
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने टेलीकॉम कंपनियों को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) चुकाने के लिए तीन महीने का समय दिया है। कोर्ट के फैसले से दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया के लिए आर्थिक परेशानी खड़ी हो गई है। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद इन कंपनियों ने केंद्र सरकार से इस मामले में राहत की गुहार लगाई है। हालांकि, दिग्गज कारोबारी मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड ने प्रतिद्वंद्वी टेलीकॉम ऑपरेटरों को वित्तीय मदद देने के सरकार के किसी भी कदम का विरोध किया है। यही नहीं मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो की तरफ से बकाया भुगतान को चुकाने का आइडिया भी सुझाया है।
रिलायंस जियो की ओर से जारी बयान में कहा गया है, भारती एयरटेल लिमिटेड आसानी से अपनी कुछ संपत्ति या शेयर बेचकर, जबकि वोडाफोन आइडिया लिमिटेड के पास सरकार को उसका बकाया भुगतान करने के लिए संसाधनों की कोई कमी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ही भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया को 49,990 करोड़ रुपये चुकाने का आदेश दिया था। रिलायंस जियो के नियामक मामलों के अध्यक्ष कपूर सिंह गुलियानी ने कहा, एयरटेल चाहे तो अपनी संपत्तियों के महज एक छोटा सा हिस्से को बेचकर इस रकम को चुका सकती है। इसके अलावा एयरटेल अपने इंडस टावर बिजनेस में 15-20 फीसदी नई इक्विटी के जरिये सरकार को इस राशि का भुगतान बड़ी आसानी से कर सकता है।
गुलियानी ने अपने पत्र में कहा कि इंडस टावर्स में वोडाफोन इंडिया की भी हिस्सेदारी है। ऐसे में उनके भी बकाये का भुगतान करने के लिए स्रोतों की कोई कमी नहीं है। बता दें कि एयरटेल का टॉवर बिजनेस पूरे भारत में 1,63,000 से अधिक मोबाइल-फोन टॉवर संचालित करता है। दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद को लिखे गए पत्र में रिलायंस जियो ने कहा है कि इन दूरसंचार कंपनियों के पास बकाया चुकाने की पर्याप्त वित्तीय क्षमता है। सीओएआई (सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) अपने दो चुनिंदा सदस्यों को सरकार से वित्तीय राहत दिलाने में मदद के लिए वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने की कोशिश कर रहा है।
जियो की तरफ से पत्र में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम ऑपरेटर्स की तरफ से पेश किए गए सभी बेबुनियाद तर्कों को निष्पक्ष और स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया गया था। इसके साथ ही कंपनियों को बकाया चुकाने के लिए तीन महीने का समय भी दिया गया है। अगर इन कंपनियों के बकाये में राहत दी जाती है तो इससे गलत परंपरा की शुरुआत होगी।



