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असम: NRC की फाइनल लिस्ट पर घमासान, सुप्रीम कोर्ट जाएगा AASU

गुवाहाटी। असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने के बाद बवाल शुरू हो गया है। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने शनिवार को कहा कि वह अंतिम एनआरसी से निकाले गए नामों के आंकड़े से खुश नहीं है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगा। उधर, राज्‍य के वित्‍त मंत्री और बीजेपी राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्‍य हिमंता बिस्व सरमा ने कहा है कि 1971 से पहले बांग्लादेश से भारत आए कई शरणार्थियों को एनआरसी सूची से बाहर निकाला गया है।

सरमा ने कहा कि कई लोगों ने आरोप लगाया है, विरासत संबंधी आंकड़ों से छेड़छाड़ की गई है। उन्‍होंने मांग की कि उच्चतम न्यायालय को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और शेष असम में 10 प्रतिशत के पुन: सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए। उधर, सेना से रिटायर अधिकारी मोहम्‍मद सनाउल्‍ला का भी नाम अंतिम एनआरसी सूची से गायब है। 

असम समझौते में आसू एक पक्षकार 
सनाउल्‍ला ने कहा, ‘मैं यह अपेक्षा नहीं कर रहा था कि मेरा नाम लिस्‍ट में होगा। मेरा मामला अभी हाई कोर्ट में लंबित है और मुझे न्‍यायपालिका पर पूरा भरोसा है। मुझे पूरा विश्‍वास है कि न्‍याय‍ मिलेगा।’ ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन भी एनआरसी से निकाले गए नामों के आंकड़े से खुश नहीं है और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगा। वर्ष में 1985 में हुए असम समझौते में आसू एक पक्षकार है जिसमें असम में रह रहे अवैध विदेशियों को पहचानने, हटाने और निकालने का प्रावधान है। 

असम में एनआरसी को अपडेट करने का काम उच्चम न्यायालय की देखरेख में किया जा रहा है ताकि केवल वास्तविक भारतीयों को ही शामिल किया जाए। आसू के महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने कहा, ‘हम इससे बिल्कुल खुश नहीं हैं। ऐसा लगता है कि अपडेशन प्रक्रिया में कुछ खामियां हैं। हम मानते हैं कि एनआरसी अपूर्ण है। हम एनआरसी की खामियों को दूर करने के लिए उच्चतम न्यायालय से अपील करेंगे।’ 

अंतिम आंकड़े घोषित आंकड़ों से मेल नहीं खाते
गोगोई ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि अंतिम आंकड़े कई मौकों पर प्रशासन की ओर से घोषित आंकड़ों से मेल नहीं खाते। बता दें कि शनिवार को अंतिम एनआरसी को ऑनलाइन जारी किया गया। इससे 19 लाख लोगों के नाम बाहर हैं। इस लिस्ट में 3.11 करोड़ लोगों को जगह दी गई है, जबकि असम में रहने वाले 19.06 लाख लोग इस लिस्ट में शामिल नहीं किए गए हैं। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने अपना दावा नहीं किया था। 

19 लाख लोगों के लिए यह भले ही चिंता की बात हो, लेकिन यह आखिरी फैसला नहीं है। लिस्ट में जगह न पाने वाले लोगों के पास इसके खिलाफ अपील करने के विकल्प होंगे। फॉरेन ट्राइब्यूनल से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक वे एनआरसी में जगह न मिलने पर अपील कर सकेंगे। यही नहीं सभी कानूनी विकल्पों को आजमाने तक उनके खिलाफ सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी। 

असम में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों की पहचान 
एनआरसी की अंतिम सूची सुबह लगभग 10 बजे ऑनलाइन जारी की गई। इसके बाद असम में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों की पहचान करने वाली 6 साल की कार्यवाही पर विराम लग गया। असम के लोगों के लिए एनआरसी का बड़ा महत्व है क्योंकि राज्य में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को हिरासत में लेने और उन्हें वापस भेजने के लिए छह साल तक (1979-1985) आंदोलन चला था। एनआरसी को संशोधित करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2013 में शुरू हुई। इसे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किया जा रहा है। 

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