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इसरो के वैज्ञानिकों की मेहनत, चांद की कक्षा में पहुंचा चंद्रयान-2

नई दिल्ली। चांद के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में एक रोवर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कराने पर केंद्रित भारत के दूसरे चंद्र मिशन ने मंगलवार को उस समय एक बड़ी उपलब्धि हासिल की जब अंतरिक्ष यान चंद्रमा की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर गया.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने यहां कहा, ‘‘चंद्रयान-2 मिशन ने एक बड़ा मील का पत्थर स्थापित किया है. मंगलवार सुबह नौ बजे यान को चांद की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया. यह प्रक्रिया लगभग 30 मिनट तक चली. चंद्रयान-2 को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करा दिया गया.’’

उन्होंने बताया कि यान को चांद की कक्षा में पहुंचाने की प्रक्रिया के दौरान इसकी गति 2.4 किलोमीटर प्रति सेकंड से घटकर 2.1 किलोमीटर प्रति सेकंड हो गई. सिवन ने एक संवाददाता सम्मेलन में आज के महत्वपूर्ण अभियान चरण के बारे में जानकारी दी और कहा, ‘‘लगभग 30 मिनट के लिए हमारे दिल की धड़कनें लगभग थम गईं.’’

22 जुलाई को किया गया था लॉन्च

चंद्रयान-2 को गत 22 जुलाई को ‘बाहुबली’ रॉकेट जीएसएलवी मार्क …-एम 1 के जरिए प्रक्षेपित किया गया था. गत 14 अगस्त को इसने धरती की कक्षा से बाहर निकलकर चंद्र पथ पर चंद्रमा की ओर बढ़ना शुरू किया था. इसमें एक ऑर्बिटर, ‘विक्रम’ नाम का एक लैंडर और ‘प्रज्ञान’ नाम का एक रोवर है.

सात सितंबर को होगी सॉफ्ट लैंडिंग
लैंडर सात सितंबर को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करेगा और यदि यह बेहद जटिल प्रक्रिया सफल होती है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत चांद पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथ देश बन जाएगा. मंगलवार की प्रक्रिया सफल होने के बाद सिवन ने कहा कि यान 140 किलोमीटर के निकटतम बिन्दु और 18,000 किलोमीटर के सुदूरतम बिन्दु के साथ कक्षा में चांद के चक्कर लगाएगा. उन्होंने कहा कि 100 किलोमीटर X 100 किलोमीटर का निकटतम और सुदूरतम बिन्दु हासिल करने के लिए एक सितंबर को चार और प्रक्रियाओं को अंजाम दिया जाएगा.

‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से जुड़ी जटिलता पर प्रकाश डालते हुए सिवन ने कहा कि चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास 90 डिग्री के झुकाव के साथ ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की अनन्य आवश्यकता है जो कि विगत के किसी भी मिशन में प्राप्त नहीं हुई है. सिवन ने बताया कि ‘विक्रम’ लैंडर दो सितंबर को ऑर्बिटर से अलग होगा. इसके बाद इसरो का ध्यान लैंडर पर केंद्रित होगा.

तीन सितंबर को होगी अहम प्रक्रिया
तीन सितंबर को एक छोटी ‘रेट्रो ऑर्बिट’ (कक्षा के पीछे होने वाली) प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. इसमें केवल तीन सेकंड लगेंगे. इसके अगले दिन लैंडर को कक्षा में 35 किलोमीटर के निकटतम बिन्दु और 97 किलोमीटर के सुदूरतम बिन्दु पर ले जाने के लिए 6.5 डिग्री की समान प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा. सिवन ने कहा कि चार सितंबर से विभिन्न मानकों की जांच की जाएगी जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि सभी प्रणालियां एकदम ठीक ढंग से काम कर रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘इसके अगले तीन दिनों में, हम लैंडर के विभिन्न मानकों की जांच करेंगे जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि सबकुछ ठीक है और हम बार-बार जांच पड़ताल करेंगे जिससे कि यह पता चल सके कि प्रणाली बिल्कुल ठीक है.’’

सात सितंबर को होगा डराने वाला क्षण
इसरो प्रमुख ने कहा, ‘‘सात सितंबर को रात एक बजकर 15 मिनट पर लैंडर 22.8 डिग्री पूर्वी अंश के साथ चंद्र मध्य रेखा के 71 डिग्री स्थल पर उतरेगा.’’ उन्होंने कहा कि यह एक डराने वाला क्षण होगा.

सिवन ने कहा कि ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ को लेकर विश्व में जो हुआ, उसे देखकर ‘‘हम कह रहे हैं कि सॉफ्ट लैंडिंग की सफलता की दर लगभग 27 प्रतिशत है. लेकिन हमें अपने मिशन को लेकर विश्वास है.’’ इस मिशन की सफलता के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.

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