
संवाददाता
गाजियाबाद । हाउस टैक्स को लेकर खूब राजनीति पिछले आठ महीनों से चल रही है। लेकिन हल अभी तक कुछ नहीं निकला। जनता परेशान है, बढ़ा हुआ टैक्स जमा कर रही है, मेयर के तमाम प्रयास के बाद भी आज भी बढ़े हुए टैक्स के बिल जा रहे हैं। अब सवाल ये पैदा हो रहा है कि आखिरकार ये सब किसके इशारे पर हो रहा है।
जब पार्षदों के मनोनयन की बात आती है या कार्यकारिणी का चुनाव आता है तो ये कहा जाता है कि मेयर का पद निगम में सर्वोपरि है। निगम का मुखिया मेयर होता है ये बात सही भी है, लेकिन आखिरकार परिवार के मुखिया की अपने घर में क्यों नहीं चल रही है इसको लेकर अब सवाल खड़े होने लगे हैं। महापौर श्रीमती सुनीता दयाल ने हाउस टैक्स बढ़ाने को लेकर पहले दिन से ही अपनी नाराजगी जाहिर कर दी थी। सवाल ये भी पैदा होता है जब सदन की मुखिया महापौर हैं तो उनकी जानकारी के बिना कैसे हाउस टैक्स में इतनी बढ़ोतरी कर दी गई। क्या पहले से उनसे विचार-विमर्श नहीं किया गया। जब बढ़े हुए टैक्स के नोटिस पाकर हा-हाकार मचा तब महापौर सक्रिय हुई और उन्होंने बोर्ड की आपात बैठक बुलाकर बढ़े हुए टैक्स का प्रस्ताव रद्द करा दिया।
जिस बोर्ड बैठक में ये प्रस्ताव रद्द हुआ उस बैठक में सभी सांसद और मंत्री जो निगम के पदेन सदस्य हैं वो भी मौजूद रहे और प्रस्ताव रद्द हो गया। इस बीच मामला हाईकोर्ट में भी चला गया। यहां सबसे बड़ा सवाल ये भी हुआ कि बोर्ड बैठक की मिनिट्स को लेकर पार्षदों को धरना तक देना पड़ा लेकिन धरने के बाद भी उन्हें मिनिट्स नहीं मिली ऐसा भी पहली बार हुआ। आखिरकार निगम में कौन हावी है ये बड़ा सवाल है। पार्षदों को मिनिट्स के लिए धरना देना पड़ा हो ऐसा भी निगम के इतिहास में पहली बार हुआ है।
सांसद, विधायक और मंत्री की मौजूदगी में हुई मिटिंग की मिनिट्स देने में क्यों देरी हुई इसकी जवाबदेही भी अभी तक तय नहीं हो पाई और चोरी-छिपे मिनिट्स की कॉपी लोगों के हाथ लगी इसको लेकर हाईकोर्ट में भी सुनवाई के दौरान काफी देरी हुई। बहरहाल, मेयर सुनीता दयाल पूरी तरह से बढ़े हुए हाउस टैक्स के खिलाफ है लेकिन अभी तक कोई भी ठोस निर्णय नहीं हुआ है। पार्षद भी व अन्य नेतागण भी हाउस टैक्स को लेकर बयानबाजी जारी कर रहे हैं, खूब राजनीति हो रही है, लेकिन जनता जहां कल खड़ी थी वहां आज भी खड़ी है, जनता को कौन राहत देगा।
राजनीति अपनी जगह है लेकिन जनता ने भी जिस उम्मीद के साथ भाजपा को वोट दिया था जनप्रतिनधियों को उस उम्मीद के साथ खरा उतरना चाहिए था। गाजियाबाद में मेयर भाजपा की, निगम में प्रचंड बहुमत भाजपा का, सांसद भाजपा का, सभी विधायक भाजपा के, एमएलसी भाजपा के, दो-दो मंत्री गाजियाबाद में और उसके बाद भी हाउस टैक्स जो सीधा तौर पर जनता से जुड़ा हुआ है उसमें वो राहत नहीं दिला पा रहे हैं तो फिर जनता के भरोसे के साथ ये सीधा-सीधा विश्वासघात नहीं तो क्या है। राजनीति से ऊपर उठकर सभी जनप्रतिनिधियों को एक मीटिंग बुलाकर इस गंभीर मुद्दे को हल करना चाहिए। मामला कोर्ट में है ये कहकर कोई जिम्मेदारी से नहीं बच सकता क्योंकि कोर्ट जाने वाले भी कोई अन्य दल के नहीं है वो सब भाजपा के ही हैं।



