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बाबा साहब के पांचवे सेंटर के रूप में जाना जाएगा ‘अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर’

संविधान निर्माता के इस स्मृति दिवस का उद्देश्य समानता, न्याय और सामाजिक बदलाव के उनके संदेश को दोहराना है

संवाददाता

नई दिल्ली । डॉ भीमराव अंबेडकर का आज 70वां महापरिनिर्वाण दिवस है. आधुनिक भारत में मृत्यु के 70 साल बाद भी अंबेडकर की चर्चा खूब होती है. उनके अनुयाई करोड़ों में हैं और लोग लगातार उनके अनुयाई बन रहे हैं. साथ ही उनके विचारों को अपना रहे हैं और उन पर शोध भी कर रहे है. डॉ भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस को लेकर अंबेडकरवादी और रेलवे मंत्रालय की यात्री सेवा समिति के पूर्व अध्यक्ष रमेश चंद्र रत्न ने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली से बाबा साहब अंबेडकर का गहरा नाता रहा है. उन्होंने अपनी अंतिम सांस भी यहीं पर ली थी. 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली के अलीपुर रोड स्थित अपने सरकारी बंगले में उनका निधन हुआ, जिसे अब अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में जाना जाता है.

उन्होंने बताया कि इसे स्मारक बनाने के लिए दलित समाज ने लंबा संघर्ष किया. इस स्मारक के अलावा भी अंबेडकर से जुड़ा हुआ एक अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर भी दिल्ली में स्थापित है. रमेश चंद्र रत्न ने बताया कि दिल्ली में एक और महत्वपूर्ण केंद्र जनपथ रोड पर स्थापित किया गया है, इसे डॉक्टर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर का नाम दिया गया है. इसकी स्थापना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अंबेडकर का संविधान हाथ में लेकर यात्रा भी निकाली थी. अम्बेडकर से प्रेरणा को लेकर के उन्होंने इस केंद्र की स्थापना की.

बाबा साहब से संबंधित चार प्रमुख तीर्थ स्थल

रमेश चंद्र रत्न ने कहा कि बाबा साहब से संबंधित देश में चार प्रमुख उनके तीर्थ स्थल हैं जन्मभूमि, चैत्र भूमि, दीक्षाभूमि और अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक इन चारों से अलग एक पांचवा सेंटर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर है, जो पीएम मोदी ने स्थापित कराया है. रमेश चंद्र रत्न ने बताया कि इस केंद्र में अंबेडकर को लेकर के शोध और उनके विचारों का प्रसार प्रसार करने का काम होता है. हर वर्ष यहां पर रिसर्च एसोसिएट को एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा जाता है. वह लोग एक साल तक यहां पर अंबेडकर से जुड़े हुए विषयों पर काम करते हैं और फिर उस काम को पूरा करने के बाद दूसरे रिसर्च एसोसिएट को यहां पर काम का मौका दिया जाता है.

संविधान निर्माता के स्मारक
संविधान निर्माता के स्मारक

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में इस तरह होता है शोध

अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में काम कर रहे रिसर्च एसोसिएट से बातचीत की. यहां पर काम कर रही महिमा ने बताया कि सेंटर पर अंबेडकर से जुड़े हुए साहित्य और अन्य शोध से संबंधित एक लाइब्रेरी है. जहां पर शोधार्थी अध्ययन करते हैं. यह लाइब्रेरी स्टूडेंट के लिए निशुल्क है. महिमा ने बताया कि मैं यहां पर अंबेडकर की मृत्यु के बाद उनसे जुड़े क्या-क्या काम हुए उन कामों को लेकर के शोध कर रही हूं. इस पर एक कॉफी टेबल बुक आने वाली है. डॉ अंबेडकर का लिटरेचर पर क्या प्रभाव रहा है. उनका म्यूजिक इंडस्ट्री में, सिनेमा पर क्या प्रभाव रहा है, उनके नाम के कितने एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस हैं, उन पर अभी तक कितने डाक टिकट जारी हो चुके हैं उनके नाम के कितने स्मारक इंडिया में और वर्ल्डवाइड बने हुए हैं. इन सारी चीजों का डाटा कलेक्ट करके उनका कंप्लीशन करने का मेरा सेक्शन है.

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महिमा ने बताया कि यहां सेंटर पर हम अंबेडकर से संबंधित हम एक लेक्चर सीरीज भी करते हैं जो नमो भारत डायलॉग्स के अंदर आती है. महिमा ने बताया कि डॉक्टर अंबेडकर ने बुद्धिस्म को अपनाया था. बुद्धिस्म से रिलेटेड जो उनकी स्टडीज हैं उसे पर हम काम करते हैं. उनके द्वारा लिखी गई बुक्स और उनके द्वारा इंस्पायर हुई बुक्स पर भी हम काम करते हैं. इन सबसे जो साहित्य तैयार होगा उसको एक बुक में समाहित करके एक कॉफी टेबल बुक तैयार की जा रही है. उन्होंने बताया कि डॉक्टर अंबेडकर जीवन दर्शन बहुत विशाल है समाज के हर क्षेत्र पर उसका प्रभाव देखने को मिलता है.

अंबेडकर द्वारा चलाए आंदोलन पर शोध

एक अन्य स्कॉलर सोनाक्षी ने बताया कि वह अंबेडकर के जात-पात के सिद्धांत और छुआछूत को लेकर जो जो डिस्क्रिमिनेशन था उसके खिलाफ जो आंदोलन चलाया था. उस पर काम कर रही हूं. इसके अलावा कलाराम टेंपल मूवमेंट पर मैं काम किया है यह अंबेडकर का बहुत ही अहम आंदोलन था. इसके अलावा चौथा पैंथर्स मूवमेंट और पांचवा लोशन मूवमेंट इन सब पर मैंने शोध कर रही हूं. मैंने अंबेडकर द्वारा बनाई गई संस्थानों पर भी काम किया है, जिसे उन्होंने इंडियन लेबर पार्टी सहित कई संस्थाएं बनाई थी. इन सबके अलावा कई मुद्दों को लेकर शोध कर रही हूं.

महापरिनिर्वाण दिवस विशेष
महापरिनिर्वाण दिवस विशेष 

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में क्या है खास

नई दिल्ली के 15 जनपथ में स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक महत्वपूर्ण संस्थान है, जो डॉ. अंबेडकर के विचारों, शिक्षाओं और दर्शन के अध्ययन, अनुसंधान और प्रसार के लिए समर्पित है, जिसमें सामाजिक समानता, बौद्ध धर्म और समावेशी विकास पर जोर दिया जाता है. यह राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोध और कार्यक्रमों का केंद्र है. डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर अंबेडकर के जीवन दर्शन योगदान पर बहुविषयक अध्य्यन करना. सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने काम करता है. इसमें एक विशाल लाइब्रेरी, मीटिंग हॉल और प्रदर्शनी हॉल है. जो छात्रों शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए एक विश्वस्तरीय केंद्र है. यह केंद्र आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक बौद्ध वास्तुकला का मिश्रण है, जो खुलापन, समावेशिता और लोकतंत्र का प्रतीक है. यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के लिए एक केंद्र के रूप में भी कार्य करता है, जहां सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए शोध किए जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 7 दिसंबर 2017 को इसका उद्घाटन किया गया था. यह केंद्र डॉ. अंबेडकर के सिद्धांतों के आधार पर एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रेरणा और अनुसंधान स्थल है, जो शिक्षा और ज्ञान के माध्यम से सशक्तिकरण पर केंद्रित है.

परिनिर्वाण स्थली अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक

दिल्ली के अलीपुर रोड पर स्थित प्लॉट नंबर 26 वह जगह है, जहां डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अंतिम सांस ली थी. इस स्मारक को संविधान की तरह दिखने वाली एक किताब के रूप में डिजाइन किया गया है. यह इमारत आधुनिक और बौद्ध वास्तुकला का मिश्रण है. संगीतमय फव्वारे, सारनाथ के अशोक स्तंभ की प्रतिकृति और 12 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा, इस परिसर के कुछ मुख्य आकर्षण हैं. पहली मंजिल में बाबा साहब के जीवन से संबंधित डिस्प्ले हैं. दो मंजिला इमारत के निचले स्तर पर एक प्रदर्शनी दीर्घा है, जिसमें डॉ. अंबेडकर द्वारा परिसर में बिताए गए दिनों को चित्रित किया गया है. उनके जीवन यात्रा को भी यहां दर्शाया गया है. स्मारक में महात्मा बुद्ध की संगमरमर की मूर्ति के साथ एक ध्यान कक्ष भी है. इस क्षेत्र में लगाए गए पत्थर को वियतनाम से आयात किया गया है.

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