
विश्व दिव्यांग दिवस पर खास
संवाददाता
नई दिल्ली। दिव्यांगों को प्रोत्साहित करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित के उद्देश्य से हर वर्ष 3 दिसंबर को वर्ल्ड डिसेबिलिटी डे मनाया जाता है. इसे लेकर राष्ट्रपति भवन में संचालित मिट्टी कैफे की पहल काबिले-तारीफ है. दरअसल, यहां 26 दिव्यांगों को रोजगार दिया गया है. अभी यहां से कुछ दिव्यांगों को हैदराबाद में नए खुले मिट्टी कैफे में भी भेजा गया है. फिलहाल यहां 15 से ज्यादा दिव्यांग काम कर रहे हैं. इस काम के बदले उन्हें समय से वेतन मिलता है. यहां पर कैशियर, शेफ, वेटर, सफाईकर्मी सहित सभी काम दिव्यांग ही करते हैं, जिन्हें देखकर लोग इस पहल की तारीफ करते नजर आते हैं.
राष्ट्रपति भवन के अलावा दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में भी मिट्टी कैफे संचालित हैं. एक मिट्टी कैफे गुरुग्राम में भी संचालित है, जहां दिव्यांग लोगों को रोजगार दिया गया है. यहां कैशियर के पद पर काम कर रही निम्मी ने बताया कि वह ग्रेटर कैलाश में रहती हैं और यहां 2 साल से काम कर रही हैं. वह हाथ और पैरों से पूरी तरह दिव्यांग हैं. यहां पर वह आठ घंटे की ड्यूटी करती हैं. उन्होंने कहा कि यह काफी अच्छी पहल है. इससे हमें आत्मनिर्भर बनने का मौका मिला है. मैं बस लोगों से यही कहना चाहूंगी कि घर में मत रुको, बाहर निकालो. दुनिया बहुत अच्छी है दिव्यांग होने का मतलब यह नहीं है कि हम कुछ नहीं कर सकते. हम हाथ पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन दिमाग से नहीं. उन्होंने बताया कि व्हीलचेयर पर बैठे-बैठे ही वह अपना काम करती हैं. यहां आने के लिए वह स और मेट्रो में चढ़ने के लिए दूसरे सहयात्री से मदद ले लेती हैं. यहां की नौकरी से अपने खर्चे खुद चला लेती हूं और कुछ परिवार में भी मदद कर देती हूं.
उनके अलावा यहां काम करने वाले शिवांश साफ बोल नहीं पाते, लेकिन पूरी शिद्दत से मिट्टी कैफे में शेफ का काम करते हैं. चाय, सैंडविच, बर्गर व अन्य स्वादवादु चीजें वह बखूबी बना लेते हैं. उन्होंने बताया कि यहां पर काम करके काफी अच्छा लगता है. यहां हल्का काम है. इसको आसानी से कर पाते हैं. वहीं एक अन्य शेफ अभिराज कुमार ने बताया कि बचपन से ही वह अपने एक से दिव्यांग हैं और आंखों में रोशनी भी कम है. वह 2 साल से मिट्टी कैफे में काम कर रहे हैं. उन्हें रहने के लिए यहीं जगह मिली हुई है.

अभिराज ने बताया, पहले मेघालय में काम करता था. वहां बहुत मेहनत का काम था, लेकिन यहां काम हल्का है. काम करने का कोई दबाव नहीं है. समय से सैलरी भी मिल जाती है. मिट्टी कैफे की पहल अच्छी है. पहले दिव्यांगों को कहीं काम नहीं मिलता था, पर अब ऐसा नहीं है. इससे हमारी काफी मदद हो रही है. यहां काम करने में घर जैसा लगता है. यहां सैलरी मिलती है उसमें से घर भी भेजते हैं.



