
संवाददाता
नई दिल्ली। सच की हवा चली तो झूठ के परदे उड़ने लगे, जो कल सियासत चिल्ला रही थी, आज उसी के घर से शब्द बदलने लगे. इधर कांग्रेस और उसके साथी दल चुनाव में धांधली के आरोप लगाकर छाती पीट रहे हैं, उधर जम्मू-कश्मीर से INDIA गठबंधन के ही साथी ने उनकी पूरी कहानी पलट दी. संसद में हंगामे के बीच जम्मू-कश्मीर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद चौधरी मोहम्मद रमजान ने 2024 में स्पष्ट तौर पर कहा कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव एकदम साफ-सुथरे हुए. दो-तिहाई बहुमत से नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनी, कांग्रेस साथ है और सब कुछ बिल्कुल पारदर्शी तरीके से हुआ.”
नेशनल कॉन्फ्रेंस के तरफ से आए इस बयान से विपक्ष की अपनी टीम के भीतर से ही विपक्षी नैरेटिव को बड़ा झटका मिला. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी और INDIA ब्लॉक के अन्य दल लगातार कहते रहे हैं कि चुनावों में गड़बड़ी होती है, वोटर लिस्ट में हेराफेरी, EVM से छेड़छाड़, वोट काटने और फर्जी वोटों को जोड़ने की साज़िश. राहुल गांधी खुले मंच से हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों का हवाला देते हुए यह आरोप दोहरा चुके हैं. बिहार में भी आरजेडी और कांग्रेस का यही सुर रहा. SIR को लेकर भी विपक्ष संसद में हंगामा कर रहा है, मानो चुनाव व्यवस्था पूरी तरह संदिग्ध हो.
NC की चुनाव आयोग को क्लीन चिट
इसी हंगामे के बीच जम्मू-कश्मीर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद चौधरी मोहम्मद रमजान ने वह बात कही, जिसने विपक्ष की नींव हिला दी. संसद में बोलते हुए उन्होंने कहा, जम्मू-कश्मीर में “2024 में विधानसभा चुनाव पूरी तरह से साफ-सुथरे थे. दो-तिहाई बहुमत से नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनाई, कांग्रेस साथ है और सब कुछ बिल्कुल साफ-सुथरे तरीके से हुआ.” उनका यह बयान सीधे-सीधे चुनाव आयोग को क्लीन चिट देता है और उन आरोपों को गलत साबित करता है जो विपक्ष लंबे समय से दोहराता आया है.
SIR पर संसद में हंगामा
दिलचस्प यह है कि रमजान का बयान उसी समय आया है जब संसद में विपक्ष SIR को लेकर सरकार से भिड़ा हुआ है. लगातार यह नैरेटिव बनाया जा रहा है कि चुनाव व्यवस्था खतरे में है, लेकिन NC सांसद ने उसी व्यवस्था को साफ-सुथरा बताकर विपक्ष की कहानी में बड़ी दरार डाल दी. विपक्षी दलों की ओर से इस बयान पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि रमजान ने एक सवाल जरूर उठाया कि जम्मू-कश्मीर की चुनी हुई सरकार के पास सीमित अधिकार हैं और ज्यादातर शक्तियां उपराज्यपाल के पास हैं. लेकिन यह सवाल चुनाव की पारदर्शिता पर नहीं, बल्कि प्रशासकीय ढांचे पर था



