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“नोबेल” की भीख मांग रहे ट्रंप, क्या करेंगे इस 10 तारीख को ?

नरेन्द्र भल्ला

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप लंबे अरसे से जिस नोबेल पुरुस्कार को पाने के लिए बावले हुए जा रहे हैं,उस पुरुस्कार के ऐलान की शुरुआत आज यानी 6 अक्टूबर से हो रही है। लेकिन अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों को जिस महत्वपूर्ण घड़ी का इंतज़ार है,वह 10 अक्टूबर को चौंकाने वाली है। इसी दिन नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान होगा।

इसकी दावेदारी में सबसे अव्वल रहने के लिये 79 बरस के ट्रंप ने तुरुप का इक्का यही फेंका कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान समेत कुल सात युद्ध रुकवाए हैं। यहां तक कि इजरायल-फिलिस्तीन की जारी जंग के बीच ट्रंप ने आख़िरी वक्त पर गाजा पीस प्लान का ऐसा मास्टर स्ट्रोक लगाया कि इजरायल समेत सारे मुल्क हैरान रह गए। इसलिये कि फिलिस्तीन की आजादी के लिये लड़ रहे “हमास” ने भी ताबड़तोड़ ट्रंप के “शांति प्लान” को अपनी मंजूरी दे दी।

हालांकि विशेषज्ञों की ओर से अब तक जो संकेत मिल रहे हैं, उसके अनुसार, ट्रंप के हाथों से ये नोबेल प्राइज फिसल सकता है। लेकिन बड़ा सवाल तो ये है कि उनका नॉमिनेशन भी हुआ है या नहीं ? इसलिये कि नोबेल शांति पुरस्कारों के लिए किसी को नामित करने की समय सीमा 31 जनवरी 2025 तक थी, यानी ट्रंप के 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनने के 11 दिन बाद तक। जबकि इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू, पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ हों या दूसरे अन्य देशों के प्रमुख हों,उन्होंने ट्रंप को काफी बाद में नामित किया था। ऐसे में,यह सवाल उठना वाज़िब है कि ट्रंप का नॉमिनेशन भी हो पाया है या नहीं। या फिर उनकी हालत “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना” वाली ही है।

दरअसल,ट्रंप ने सात युद्ध रुकवाने के जो दावे किये हैं,उसे उनके बड़बोलेपन का प्रतीक माना जा रहा है क्योंकि इन 14 देशों में से किसी ने भी आधिकारिक तौर पर अब तक ये नहीं कहा है कि उसने ट्रंप के कहने पर ही जंग रोकी है।

बता दें कि शांति के लिये बनी नोबेल प्राइज चयन समिति अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, संगठनों, कानूनों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर बहुत ध्यान देती है। घरेलू मोर्चे पर दावेदार नेताओं के कामकाज के तरीकों का मूल्यांकन करती है। लेकिन अवैध अप्रवासियों के खिलाफ ट्रंप ने जिस तरह डेमोक्रेटिक कब्जे वाले प्रांतों में नेशनल गार्ड्स उतारे और हार्वर्ड जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों की फंडिंग रोकने जैसे कदम भी उनकी दावेदारी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकते हैं।

इससे भी ज्यादा यह कि ट्रंप ने तो यहां तक धमकी दे डाली थी कि अगर उन्हें नोबेल पीस प्राइज नहीं मिला तो ये अमेरिका का अपमान होगा। लेकिन ओस्लो में नोबेल शांति पुरस्कार चयन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि “अमेरिका फर्स्ट” को लेकर विभाजनकारी नीतियों को बढ़ावा दे रहे ट्रंप के लिए मौका बेहद कम है। नोबेल प्राइज पर किताब लिखने वाले इतिहासकार ओएविंड स्टीनर्सन का कहना है कि इस शांति पुरस्कार के लिए तय मानकों से कई मायनों में ट्रंप का रुख उलट रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट  (SIPRI)के प्रमुख करीम हगाग का कहना है कि शांति के प्रयासों में गंभीरता देखनी चाहिए।
गौरतलब है कि इस साल 338 व्यक्तियों और संगठनों का नामांकन हुआ है, लेकिन 50 सालों से नाम गोपनीय रखने की परंपरा है। लिहाज़ा, इस बार भी दुनिया को ये नहीं मालूम कि किस देश ने किसे नामांकित किया है।

दिलचस्प बात ये है कि अमेरिका के 4 राष्ट्रपतियों को अब तक नोबेल पुरस्कार मिला है। थियोडोर रूजवेल्ट को 1906 में, वुडरो विल्सन को 1919 में, जिमी कार्टर को 2002 में और बराक ओबामा को साल 2009 में यह सम्मान मिला था। ओबामा को तो उनके कार्यकाल के नौवें महीने में ही ये नोबेल पीस प्राइज मिल गया था। ट्रंप को 2018 के बाद से कई बार नामित किया जा चुका है। लेकिन ट्रंप आज भी कुछ वैसा ही ख्वाब देख रहे हैं कि पद पर रहते हुए वे भी
अमेरिकी इतिहास में अमर हो जायें। इस मायने में 10 अक्टूबर उनकी जिंदगी का सबसे अहम दिन होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

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