
संवाददाता
लखनऊ । उत्तर प्रदेश में पुलिस की एफआईआर, अरेस्ट मेमो, वारंट या किसी भी दस्तावेज पर अब जाति नहीं लिखी जाएगी . हाईकोर्ट के इस बाबत आदेश के बाद योगी सरकार ने भी फैसला लागू कर दिया है . मुख्य सचिव की तरफ से इसका शासनादेश जारी करते हुए सभी अधिकारियों को कड़ाई से आदेश का पालन करने का निर्देश दिया है . हाईकोर्ट का आदेश आने के एक हफ्ते के अंदर ही योगी सरकार की तरफ से शासनादेश जारी करने को जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए उठाए गए बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है . इसके साथ ही यूपी में अब जाति आधारित रैलियों और प्रदर्शनों पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है. सोशल मीडिया पर ऐसी गतिविधियों की सख्त निगरानी की जाएगी और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी.
समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने यूपी सरकार के उस हालिया फैसले पर सवाल खड़े किए हैं, जिसमें जाति का उल्लेख नाम, नेम प्लेट, एफआईआर और अन्य दस्तावेजों से हटाने का आदेश जारी किया गया है. यह निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद लिया गया है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी आदेश के अनुसार अब पहचान के लिए माता-पिता के नाम का उपयोग किया जाएगा. वहीं, पुलिस रिकॉर्ड्स, थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत हटाए जाएंगे. सरकार ने इस फैसले को जातिगत भेदभाव खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम बताया है. वहीं अखिलेश यादव ने एक पोस्ट के माध्यम से बड़ा तंज कसा है.
अखिलेश ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि केवल दस्तावेजों, नेम प्लेट और एफआईआर से जाति का उल्लेख हटाने भर से जातिगत भेदभाव की जड़ों को खत्म नहीं किया जा सकता. उन्होंने सवाल उठाया कि 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे? वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों के आधार पर होने वाले जातिगत प्रदर्शन को मिटाने के लिए क्या योजना बनाई जाएगी? किसी से मिलने पर नाम से पहले जाति पूछने की मानसिकता को समाप्त करने के लिए क्या उपाय होंगे? किसी का घर धुलवाने जैसी भेदभावपूर्ण परंपराओं को खत्म करने और झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने जैसी जातिगत साजिशों पर रोक लगाने के लिए क्या कदम होंगे? अखिलेश के ये सवाल सरकार की नीयत पर सीधा सवाल खड़ा करते हैं, जो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं.
गौरतलब है कि यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए बड़ा कदम उठाया है. इस फैसले के तहत एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड्स और सार्वजनिक स्थानों से जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा. वहीं आरोपी की पहचान के लिए माता-पिता के नाम का उपयोग होगा, जबकि थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत भी हटाने के निर्देश दिए गए हैं. इसके साथ ही जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. साथ ही सोशल मीडिया पर सख्त निगरानी का प्रावधान भी शामिल है. हालांकि SC/ST एक्ट जैसे मामलों में छूट रहेगी.
हालांकि यूपी सरकार का ये आदेश यूपी की राजनीतिक पार्टियों को पसंद नहीं आ रहा है. इसका असर सपा, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी, अपना दल जैसी पार्टियों पर पड़ सकता है क्योंकि ये पार्टिया तमाम रूपों में जाति-आधारित जनसभाएं करती आई हैं.
लग सकता है इन पार्टियों को झटका?
हालांकि यूपी सरकार का ये आदेश यूपी की राजनीतिक पार्टियों को पसंद नहीं आ रहा है. इसका असर सपा, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी, अपना दल जैसी पार्टियों पर पड़ सकता है क्योंकि ये पार्टिया तमाम रूपों में जाति-आधारित जनसभाएं करती आई हैं.



