
संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली की पहचान और शान मानी जाने वाली डबल डेकर बसें 1989 तक राजधानी की सड़कों पर दौड़ती रहीं, लेकिन पुराने बेड़े की जर्जर हालत व सीएनजी युग की शुरुआत ने इन डबल डेकर बसों को दिल्ली की सड़क से विदा लेना पड़ा. अब तीन दशक बाद बाद इन्हें फिर से राजधानी की सड़कों पर उतारने की योजना पर काम चल रहा है. वो भी इलेक्ट्रिक अवतार में. स्पेशल बसों के बाद ये डबल डेकर बसें लोगों को ऐतिहासिक सफर की याद दिलाएंगी.
4.75 मीटर ऊंची है डबल डेकर बसः दिल्ली ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (डीटीसी) को पायलट प्रोजेक्ट के लिए अशोक लीलैंड द्वारा सीएसआर फंड से एक इलेक्ट्रिक डबल डेकर बस दी गई है. यह इलेक्ट्रिक बस है और इसे ओखला डिपो में खड़ा किया है. इस डबल डेकर बस की ऊंचाई 4.75 मीटर और 9.8 मीटर लंबी है. इन बसों में 63 से अधिक यात्री एक साथ सफर कर सकते हैं. दिल्ली के परिवहन मंत्री पंकज कुमार सिंह ने कहा, ”हमारे पास अभी एक डबल डेकर बस है. दो और बस मिलने की उम्मीद है.”
जल्द शुरू होगा ट्रायल रन
डबल डेकर बस चलाने के लिए जल्द ही इसका ट्रायल रन चुनिंदा रूट्स पर शुरू किया जाएगा. परिवहन मंत्री पंकज कुमार सिंह के मुताबिक, डबल डेकर बस का ट्रायल रन रूट्स पर होगा, जिससे बैटरी परफॉर्मेंस व सुरक्षा की जांच की जा सके. हालांकि, डबल डेकर की वापसी इतनी आसान नहीं है. दरअसल, फ्लाईओवर की ऊंचाई, सड़कों पर लटकी पेड़ों की टहनियां और ओवरहेड बिजली की तारें इन बसों के लिए बड़ी चुनौती है. इसके लिए डीटीसी के अधिकारी रूट मैपिंग में जुटे हैं, जिससे सुरक्षित रूट बनाया जा सके.
परिवहन व्यवस्था को बेहतर करेंगी डबल डेकर बसें
दिल्ली परिवहन विभाग के पूर्व उपायुक्त व परिवहन विशेषज्ञ अनिल छिकारा का कहना है कि इन बसों की वापसी केवल तकनीकी व इंफ्रास्ट्रक्चर की चुनौतियों से निपटने के बाद ही संभव होगी. तीन दशक बाद डबल डेकर बस की वापसी न सिर्फ एक तकनीकी प्रयोग है बल्कि दिल्लीवासियों के लिए उन सुनहरे दिनों की याद भी होगी. जब ऊपरी डेक से राजपथ, कनॉट प्लेस जैसे अन्य स्थानों का नज़ारा देखने का रोमांच ही कुछ और था. दिल्ली के अंदर डबल डेकर बसें बहुत अच्छे से चलती थी. इसमें यात्रियों की कैपेसिटी ज्यादा होती है. ये सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करेंगी.
इतिहास में डबल डेकर बसें: राजधानी दिल्ली में डबल डेकर बसों का इतिहास राजधानी के सार्वजनिक परिवहन की खास पहचान रहा है. डबल डेकर बसों का संचालन वर्ष 1949 में डीटीसी के अधीन शुरू हुआ था. पीले हरे या लाल रंग की ये बसें देखने में आकर्षक व सफर के लिहाज से अनोखी थी. भीड़भाड़ वाले इलाकों जैसे कश्मीरी गेट, पुरानी दिल्ली, करोल बाग व कनॉट प्लेस तक पहुंचने के लिए यात्री अक्सर इन बसों को पसंद करते थे. इतना ही नहीं ऊपरी मंजिल पर बैठकर दिल्ली की सड़कों व बाजारों का नजारा यात्रियों के लिए यादगार अनुभव होता था. यात्री ऊपर की मंजिल पर बैठकर सफर करना ज्यादा पसंद करते थे. विभिन्न चुनौतियों के चलते वर्ष 1989 में इन बसों का संचालन बंद हो गया.



