
संवाददाता
गाजियाबाद । गाजियाबाद में एक जमाने में कांग्रेस का बड़ा डंका था। भाजपा का किला विधानसभा चुनाव में और लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने ही ढहाया था। इतना ही नहीं लगातार कई बार शहर से विधायक और प्रदेश सरकार में कई बार मंत्री रहे बालेश्वर त्यागी और लगातार चार बार भाजपा से सांसद रहे डॉ. रमेश चंद तोमर को कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल ने हराकर एक मजबूत स्थिति में कांग्रेस को खड़ा किया था।
उस जमाने में सभी कांग्रेसी भले ही आपस में अलग-अलग रहते हों लेकिन संगठन और चुनाव के समय एक हो जाते थे। हालांकि हर दौर में कांग्रेस में स्थानीय स्तर पर चार-चार गुट रहे और सब गुटों की कमान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संभालते रहे लेकिन उसके बाद भी ऐसी स्थिति कभी नहीं आयी जैसे आज कुछ कांग्रेस के लोग अपनी ही कांग्रेस को कमजोर करने में लगे हुए हैं। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष आसिफ सैफी बकायदा वोटों से चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने। उन्होंने बकायदा अपनी कमेटी भी बना दी। पूरी मुस्तैदी के साथ वो और उनकी टीम यूथ टीम को मजबूत करने में लगी रही लेकिन उसके बाद एक और कार्यवाहक अध्यक्ष युवा कांग्रेस में बना दिया गया।
नियम के अनुसार यदि निर्वाचित अध्यक्ष निष्क्रिय है उसे हटा दिया गया तो चुनाव में जो दूसरे नंबर पर आता है उसे जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन यहां तो तस्वीर ही कुछ और है। सक्रिय तरीके से काम करने के बाद एक कार्यवाहक अध्यक्ष बनवा दिया गया। हैरत की बात तो ये है कि आसिफ सैफी की भी कमेटी हाईकमान ने स्वीकृत की और एक कमेटी होते हुए भी कार्यवाहक अध्यक्ष की भी कमेटी हाईकमान ने स्वीकृत कर दी। अब यहां पर कार्यकर्ता असमंजस में है कि वो किसे अपना नेता माने। निर्वाचित अध्यक्ष होने के बाद भी कार्यवाहक अध्यक्ष का होना कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस की स्थिति पैदा करता है। यदि निर्वाचित अध्यक्ष निष्क्रिय है, काम नहीं करते तो उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करके हटाया जा सकता है और फिर दूसरे नंबर पर आने वाले व्यक्ति को या फिर कार्यवाहक अध्यक्ष को जिम्मेदारी दी जा सकती है। लेकिन यहां तो तस्वीर ही अलग है।
कांग्रेस हाईकमान यूथ को जोडऩे के लिए बराबर प्रयासरत है लेकिन गाजियाबाद में दो-दो अध्यक्ष और दो-दो कमेटियां होने के बाद यूथ इस बात को लेकर परेशान है कि वो किसकी जिंदाबाद करे। यदि गुटबाजी दूर करके सबको एक साथ बिठाकर अगर कोई मनमुटाव हो उसे दूर किया जा सकता है। इससे कांग्रेस को मजबूती मिलेगी। लेकिन अगर यही स्थिति रही तो फिर आने वाले समय में किस तरह प्रतिद्विंदी दलों का मुकाबला कांगे्रस चुनाव में करेगी। स्थिति ये है कि निर्वाचित अध्यक्ष को हाईकमान से भी कोई कार्यक्रमों की जानकारी नहीं मिलती है। इतना ही नहीं पूरा मामला हाईकमान के संज्ञान में आने के बाद भी अभी तक ऊपर से कोई ऐसा निर्देश नहीं आया जिससे आपस में चल रही गुटबाजी को समाप्त किया जा सके।
गाजियाबाद में कई वरिष्ठ कांग्रेसी है जो बिल्कुल भी इस ओर प्रयास नहीं कर रहे हैं यही कारण है कि युवा कांग्रेस से जुडऩे के बजाय वो और दूर होते जा रहे हैं कि जब आपस में सामंजस नहीं है तो फिर किसका झंडा बुलंद करें। युवा कांग्रेस के निर्वाचित अध्यक्ष आसिफ सैफी लगातार जनहित के मुद्दो को लेकर अपनी आवाज बुलंद करते रहते हैं। वहीं अल्पसंख्यक कांग्रेस के अध्यक्ष सलीम सैफी भी इसी तरह गुटबाजी से परेशान हैं। हालांकि वो जितने धरना प्रदर्शन आंदोलन करते हैं इतने पहले कभी नहीं होते लेकिन वो भी अपने ही दल के कुछ बड़े नेताओं की गुटबाजी का शिकार हो रहे हैं। बहरहाल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हाईकमान को इस तरह की गुटबाजी को समाप्त करके फिर उसी कांग्रेस को उसी ताकत के साथ वापस लाना होगा जो कभी इस जिले में एक मजबूत विपक्ष था।
इसमें कोई दोराय नहीं है कि सुरेंद्र प्रकाश गोयल के जाने के बाद जमीनी नेताओं की बहुत कमी हो गई है। अभी कांगे्रस के वरिष्ठ नेता बिजेंद्र यादव के साथ एक घटना हुई जिस तरह आवाज बुलंद करना चाहिए थी आवाज बुलंद नहीं हुई। बिजेंद्र यादव एक जमीनी नेता है और लंबे से समय से कांगे्रस में बेबाकी से साथ आवाज बुलंद करते रहे हैं। हर गरीब और मजलूम के साथ वो खड़े रहे हैं लेकिन आज जब कांगे्रसियों की जरूरत थी तब कोई मजबूती के साथ खड़ा नहीं हुआ। ये भी अच्छा संकेत नहीं है।



