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दिल्ली में छोटे दल क्या दिखा पाएंगे बड़ा धमाल? बसपा से AIMIM और एनसीपी तक ने ठोक रखी है चुनावी ताल

विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है. सत्ताधारी आम आदमी पार्टी और बीजेपी जहां सत्ता पर काबिज होने की जंग लड़ रही हैं तो कांग्रेस चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए जी-जान से लगी है. ऐसे में दिल्ली चुनाव में इस बार कई छोटे दल बड़ा धमाल करने की मंशा लेकर उतरे हैं. बसपा से लेकर AIMIM और अजित पवार की एनसीपी तक दिल्ली चुनाव में किस्मत आजमा रही है. यही नहीं कई दल ऐसे ही हैं, जिनके न ही दिल्ली में संगठन हैं और न ही सियासी आधार. इसके बावजूद चुनाव में ताल ठोक रखी है.

दिल्ली चुनाव में इस बार 70 विधानसभा सीटों पर 699 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतार रखे हैं तो बीजेपी 68 सीट पर खुद चुनाव लड़ रही है और दो सीटें उसने अपने सहयोगी दलों को दी है. जेडीयू एक सीट पर चुनाव लड़ रही है तो एक सीट पर एलजेपी किस्मत आजमा रही है. इस तरह दिल्ली का चुनावी मुकाबला भले ही तीन प्रमुख राष्ट्रीय दलों के बीच हो लेकिन क्षेत्रीय और छोटे दलों के उतरने से सियासी धड़कन तीनों ही दलों की बढ़ी हुई हैं.

दिल्ली में छोटे दल लड़ रहे चुनाव

कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बीजेपी के अलावा दिल्ली चुनाव में बसपा से लेकर AIMIM और एनसीपी तक अपनी-अपनी किस्मत आजमा रही हैं. मुस्लिम वोटों के सहारे AIMIM को राष्ट्रीय फलक पर पहचाने दिलाने का सपना देखने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली के चुनाव में सिर्फ दो सीटों पर ही प्रत्याशी उतारे हैं. AIMIM ने मुस्तफाबाद सीट पर दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को उतार रखा है तो ओखला सीट से सफाउर रहमान को प्रत्याशी बनाया है. AIMIM के दोनों ही प्रत्याशी जेल में बंद हैं और जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं.

बसपा दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 69 सीट पर किस्मत आजमा रही है. बाबरपुर सीट छोड़कर बसपा ने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. बसपा ने इस बार दिल्ली की सियासत में एक नया सियासी प्रयोग किया है और कई आरक्षित सीटों पर दलित समाज के प्रत्याशी उतारे हैं. इसके अलावा मुस्लिम बहुल सीट पर गैर-मुस्लिम प्रत्याशी को उतारकर दिल्ली चुनाव के मुकाबले को रोचक बना दिया है, जिससे कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सियासी टेंशन बढ़ी हुई है. बसपा का सियासी आधार दलित वोटों के बीच रहा है.

महाराष्ट्र की सियासत के दिग्गज नेता अजित पवार की एनसीपी भी दिल्ली चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरी है. प्रदेश की 70 में से 30 सीट पर अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं. अजित पवार महाराष्ट्र में एनडीए का हिस्सा हैं लेकिन दिल्ली चुनाव में वो अकेले किस्मत आजमा रहे हैं. इसके अलावा दलित राजनीतिक के उभरते चेहरे चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी ने भी दिल्ली चुनाव में कई सीटों पर प्रत्याशी उतार रखे हैं.

चुनाव लड़ रही इन पार्टियों का नाम सुना है?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कई ऐसी पार्टियां भी किस्मत आजमाने उतरी हैं, जिनके नाम पहली बार लोगों ने सुने होंगे. इस फेहरिश्त में गरीब आदमी पार्टी, आम आदमी संघर्ष पार्टी (एस), सम्राट मिहिर भोज समाज पार्टी, सांझी विरासत, आपकी अपनी पार्टी, राष्ट्रवादी जनलोक पार्टी (सत्या), बहुजन शोषित समाज संघर्ष पार्टी, वन भारत सिटीजन पार्टी, समता पार्टी, नवरंग कांग्रेस पार्टी, रिपब्लिक सेना, असंख्य समाज पार्टी और आम जनता पार्टी जैसे नाम वाली पार्टियों के उम्मीदवार भी ताल ठोक रहे हैं.

दिल्ली चुनाव में इन छोटी-छोटी पार्टियों ने केवल तीन-चार सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे हैं. इस बार बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को छोड़कर 29 से ज्यादा पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं. यही नहीं, इन प्रत्याशियों के दावे भी अनूठे हैं. किसी को सत्ता पर काबिज होकर सीएम बनना है तो किसी को बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को हराकर सिक्का जमाना है.

दिल्ली में छोटी पार्टियां करती रही हैं कमाल

दिल्ली में छोटी पार्टियां और निर्दलीय विधायक चुने जाते रहे हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सियासी उदय के बाद दिल्ली का मुकाबला आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सिमट कर रह गया है. दिल्ली में विधानसभा बहाल होने के बाद 1993 के चुनाव में तीन निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 1998 में जनता दल के एक प्रत्याशी और दो निर्दलीय प्रत्याशी बदरपुर और सीलमपुर से जीते थे. साल 2003 के चुनाव में बदरपुर में एनसीपी और जनता दल सेक्युलर से एक उम्मीदवार और नजफगढ़ विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी.

2008 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा के दो, लोक जनशक्ति पार्टी के एक और नजफगढ़ से एक निर्दलीय को जीत मिली थी. 2013 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू से एक, शिरोमणि अकाली दल से एक और मुंडका सीट से एक निर्दलीय को मिली थी. आम आदमी पार्टी के दिल्ली की राजनीति में उदय के बाद से निर्दलीय, अन्य राष्ट्रीय दल और क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशियों की जीत का सिलसिला मानो थम गया. ऐसे में इस बार देखना होगा कि दिल्ली में इस बार छोटे दल क्या बड़ा धमाल करेंगे.

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