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गाजियाबाद भाजपा संगठन चुनाव में इस बार जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखा जाएगा

विशेष संवाददाता

गाजियाबाद। भाजपा संगठन चुनाव को लेकर इस बार पूरी तरह से जातीय समीकरण का ख्याल रख रही है। यूपी में ढाई साल बाद विधानसभा चुनाव होना है। इसको ध्यान में रखकर ही संगठन में जिम्मेदारियां दी जा रही हैं। गाजियाबाद महानगर की बात हो तो यहां पर भी पूरी तरह से जातीय समीकरण पर ध्यान दिया जा रहा है।

गाजियाबाद के जिलाध्यक्ष पद पर तीन नाम रामकुमार त्यागी, पवन सिंघल और जितेंद्र चितौड़ा के नाम चल रहे हैं। इसमें प्रमुखता के साथ जितेंद्र चितौड़ा नाम चल रहा है। अगर मेरठ में हरीश चौधरी जिलाध्यक्ष नहीं बनते हैं तो फिर जितेंद्र चितौड़ा को जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा। वहीं गौतमबुद्घनगर में भी क्षेत्रीय सांसद डॉ. महेश शर्मा की पसंद का ही महानगर अध्यक्ष बनाने की तैयारी में है। अभिषेक शर्मा का नाम प्रमुखता से चल रहा है। इस नाम की सहमति महेश शर्मा के साथ नोएडा के विधायक पंकज सिंह की भी है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अभिषेक शर्मा महानगर अध्यक्ष बन सकते हैं। कहीं ना कहीं ब्राह्मण को एडजेस्ट करना है। उधर क्षेत्रीय अध्यक्ष के पद पर कई नाम चल रहे हैं। इसमें प्रमुखता से देवेंद्र चौधरी का नाम है। हालांकि हर बार इनका नाम चलता है और बाद कट जाता है। हालांकि वर्तमान अध्यक्ष भूपेेंद्र चौधरी की चली तो वो चाहते हैं क्षेत्रीय अध्यक्ष पद पर बसंत त्यागी को बनाया जाए। वैसे अगर उम्र बीच में नहीं आयी तो पूर्व मेयर आशु वर्मा के नाम पर भी विचार हो सकता है।

आशु वर्मा एक ऐसा नाम है जो कार्यकर्ताओं की पहली पसंद हैं और उनका सभी वर्गों में अच्छा सम्पर्क है। मेयर का अल्प कार्यकाल रहा उसके बाद भी उन्होंने जिस तरह काम किया वो सभी के सामने है। लेकिन वर्तमान हालात में काम और समर्पण अब पुराने जमाने की बात हो गई। इसलिए न जाने कौन कहां से अपनी अपरोच लगा दे और सब देखते रह जाएं।

गाजियाबाद के महानगर अध्यक्ष पद पर जिस तरह रस्साकशीं चल रही है वो सभी के सामने है। सभी जनप्रतिनिधि चाहते हैं कि उनकी जेब का ही अध्यक्ष बन जाए। यहां भी समर्पण और त्याग की कोई नहीं सुन रहा है। तीन दशक से अधिक समय से पार्टी का झंडा उठाने वालों का कोई सम्मान दिखाई नहीं दे रहा है। बस सभी जनप्रतिनिधि चाहते हैं कि ऐसा अध्यक्ष बने जो केवल उन्हीं के कहने पर काम करे। जबकि संगठन एक स्वतंत्र होना चाहिए और उसमें किसी भी जनप्रतिनिधि को हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं होना चाहिए। क्योंकि संगठन ही सर्वोपरि होता है।

भाजपा हाईकमान को भी चाहिए कि वो कार्यकर्ताओं की भावनाओं का भी ख्याल करे ताकि फिर कार्यकर्ताओं को भी ये लगे कि अगर आज वो पार्टी का झंडा बुलंद किये हुए है तो कल उनका नंबर भी आ सकता है। यदि केवल अपने-अपनों की बात होने लगेगी तो फिर समर्पित कार्यकर्ताओं को हमेशा की तरह निराशा ही मिलती रहेगी। कौन अध्यक्ष बनेगा अभी ये तय नहीं है लेकिन जो नाम गये है और उनमें से जिन पर चर्चा हुई उनमें से तीन नाम ऐसे हैं जो वास्तव में पार्टी का झंडा कई दशकों से उठाये हुए हैं और उनको कमान दी जाएगी तो फिर कार्यकर्ताओं में भी एक अच्छा मैसेज जाएगा। हाईकमान ने झंडा बुलंद करने वालों को ही मौका दिया है।

बहरहाल, बहुत जल्द लिफाफा खुलने वाला है। देखना है कि किसकी इसमें चली है, किसने जोर का झटका धीरे से दिया है। क्योंकि सभी जनप्रतिनिधि एक नाम पर सहमत नहीं हो पाये ये भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है। सभी अपने-अपने लोगों को लेकर जोरआजमाईश कर रहे हैं और तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। कोई भी किसी के समर्पण और पार्टी के प्रति वफादारी नहीं देख रहा है और एक दूसरे को फोन करके यही कह रहे हैं कि फला बन गया तो मेरा नुकसान हो जाएगा। जाहिर है सबको निजी लाभ चाहिए और संगठन मजबूत हो ये कोई नहीं सोच रहा है।

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