
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। लोकसभा में आज एक देश-एक चुनाव का संशोधन बिल पेश किया गया। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे पेश किया। भाजपा ने कहा कि इस विधेयक से देश का विकास तेजी से होगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से व्यवस्था बिगड़ती है। BJP ने इसके चलते अपने सांसदों को व्हिप जारी किया था।
उधर, विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया है। कांग्रेस ने कहा कि ये संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।
प्रियंका गांधी ने कहा कि यह हमारे राष्ट्र के संघवाद के खिलाफ है। हम विधेयक का विरोध करते रहेंगे। प्रियंका गांधी ने एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक की आलोचना करते हुए इसे संविधान विरोधी विधेयक बताया। इसके अलावा, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने विधेयक को वापस लेने की मांग की।
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल स्वीकार करने के लिए ई-वोटिंग की गई। बिल के पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े। इसके बाद जब विपक्ष ने इस पर आपत्ति जताई तो अमित शाह ने कहा कि इन्हें पर्ची दे दीजिए। इस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि मैंने पहले ही कहा था कि विपक्ष को अगर आपत्ति हुई तो वो सांसद पर्ची के माध्यम से भी अपना वोट संशोधित कर सकता है।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर दोबारा वोटिंग के बाद इसके पक्ष में 269 वोट तो विरोध में 198 वोट पड़े हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक को मंजूरी के लिए कैबिनेट में लिया गया था, तो प्रधानमंत्री मोदी ने सुझाव दिया था कि विधेयक को विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा जाना चाहिए। शाह ने कहा कि अगर कानून मंत्री विधेयक को जेपीसी को भेजने के इच्छुक हैं, तो इसके परिचय पर चर्चा समाप्त हो सकती है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की तरफ से भी विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की मांग की गई है।
वन नेशन वन इलेक्शन बिल पर शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि ये सिर्फ ध्यान भटकाने वाली बातें हैं। जिन मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए, लोगों के मुद्दों पर बात नहीं होती। हरसिमरत ने कहा कि न तो सरकार और न ही कांग्रेस सदन चलाना चाहती है। उन्होंने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन से किसे खाना मिलेगा? किसे नौकरी मिलेगी? कौन सा किसान मुद्दा हल होगा?
समाजवादी पार्टी ने वन नेशन-वन इलेक्शन बिल का विरोध किया है। आजमगढ़ से सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि इस बिल के जरिए तानाशाही के विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
तेजस्वी बोले- बिहार में एक चरण में चुनाव नहीं करा सकते, वो देश में एक चुनाव क्या कराएंगे
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा, ‘ये लोग RSS के एजेंडा को लागू करना चाहते हैं इसलिए हम लोग कहते हैं कि ये लोग संविधान विरोधी हैं। अभी ये कह रहे हैं कि ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’, आगे कहेंगे ‘एक राष्ट्र एक पार्टी, फिर कहेंगे कि ‘एक राष्ट्र एक नेता’ क्या मतलब हुआ, बाद में पता चलेगा कि विधानसभा चुनाव की जरूरत ही नहीं है। ये बीजेपी के लोग वास्तविक मुद्दे पर बात नहीं करते हैं। कहते हैं कि इससे खर्चा बचेगा। तो पीएम मोदी कितना विज्ञापन में खर्चा करते हैं? वह चुनाव से ज्यादा विज्ञापन पर खर्चा करते हैं। वह 11 साल में विज्ञापन पर कितना खर्चा किए ये बता दें? जो बिहार में एक फेज में चुनाव नहीं करा सकता उससे क्या उम्मीद की जाए कि वह ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ कराए।
केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि देश के लिए ये कोई नया कॉनसेप्ट नहीं है।
इसमें कहा गया कि संविधान लागू होने के बाद 1951 से 1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराए गए थे। सरकार ने कहा कि 1951-52 में जब देश में पहली बार चुनाव हुए थे, तो लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के लिए एक ही साथ वोट डाले गए थे।
4 बार साथ हुए चुनाव
बयान के मुताबिक, ‘यही प्रक्रिया 1957, 1962 और 1967 में भी जारी रही। हालांकि 1968 और 1969 में कुछ राज्यों की विधानसभा के कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व ही भंग हो जाने पर यह क्रम टूट गया। वहीं 1970 में लोकसभा के चुनाव भी पहले करा लिए गए।’
सरकार ने कहा कि पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने अपने 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल इमरजेंसी के कारण 1977 तक बढ़ गया। तब से लेकर अब तक, केवल कुछ लोकसभा का कार्यकाल ही 5 वर्षों तक चल पाया, जबकि छठवीं, सातवीं, नौवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और 13वीं लोकसभा समय से पहले ही भंग हो गई।
विधानसभाएं हुईं समय पूर्व भंग
बयान में ये भी कहा गया कि राज्य की विधानसभाओं को भी यही समस्या झेलनी पड़ी, जिसमें कुछ को समय से पूर्व भंग कर दिया गया, वहीं कुछ का कार्यकाल बढ़ाना पड़ा। इन्हीं वजहों से एक साथ हो रहे चुनाव का क्रम बिगड़ गया और वर्तमान में हर समय चुनाव होते रहने जैसी स्थिति पैदा हो गई।
एक साथ चुनाव के पक्ष में सरकार
वन नेशन-वन इलेक्शन पर बनी हाई लेवल कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि एक साथ चुनाव से शासन चलाने में निरंतरता बनी रहती है। अभी देश में हर समय चुनाव होते रहते हैं। इससे केंद्र और राज्य सरकार समेत राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं का ध्यान शासन से ज्यादा चुनाव की तैयारियों पर ज्यादा होता है।
ऐसे में बयान में वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन करते हुए कहा गया है कि इससे सरकार का ध्यान विकास के कार्यों पर लगेगा और जनहित के कामों में तेजी आएगी।



