राज्य

एक साल में ही जम्मू–कश्मीर का एलजी क्यों बदला गया, मुर्मू की जगह मनोज सिन्हा‍ को जिम्मेदारी

नई दिल्‍ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता मनोज सिन्हा अब जम्मू और कश्मीर के नए उपराज्यपाल होंगे। बुधवार शाम को गिरीश चंद्र मुर्मू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अब गुरुवार सुबह राष्ट्रपति भवन की ओर से मनोज सिन्हा की नियुक्ति का ऐलान किया गया है।

आपको बता दें कि 5 अगस्त को ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटे एक साल पूरा हुआ है। इसी बीच बुधवार शाम को अचानक जीसी मुर्मू के इस्तीफे की खबर आई थी। मुर्मू का इस्तीफा राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया है।

घाटी की सियासत में बदलाव के संकेत

अब जब मनोज सिन्हा को नए एलजी की जिम्मेदारी सौंपी गई है, मतलब साफ है कि एक बार फिर जम्मू-कश्मीर के उच्चस्थ पद पर राजनीतिक एंट्री हुई है। इससे पहले जब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य था तब सत्यपाल मलिक यहां के राज्यपाल थे, लेकिन जब केंद्रशासित प्रदेश बना तो अधिकारी जीसी मुर्मू को भेजा गया। जीसी मुर्मू की गिनती भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास अधिकारियों में होती रही है।

कौन हैं मनोज सिन्हा?

पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा (File)

मनोज सिन्हा पूर्व में गाजीपुर से सांसद रहे हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के बड़े चेहरे हैं। हालांकि, 2019 का लोकसभा चुनाव वो हार गए थे, जिसे एक बड़ा झटका माना गया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मनोज सिन्हा मंत्री रह चुके हैं और उनके पास रेलवे के राज्यमंत्री और संचार राज्यमंत्री का कार्यभार था।

उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली थी, तब मनोज सिन्हा ही मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे थे। वो दिल्ली से वाराणसी पूजा करने पहुंच गए थे और उम्मीद में थे कि मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे।

लेकिन पार्टी की ओर से योगी आदित्यनाथ को आगे किया गया। मनोज सिन्हा की गिनती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद नेताओं में होती है। ऐसे में अब एक बार फिर केंद्र सरकार की ओर से मनोज सिन्हा को बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।

क्‍यों हटे मुर्मू

जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल रहते हुए गिरीश चंद्र मुर्मू केंद्र की मंशा के अनुरूप राजनीतिक संदेश नहीं दे पा रहे थे। कई मामलों में इस केंद्र शासित प्रदेश की टॉप ब्यूरोक्रेसी और पूर्व ब्यूरोक्रेट उप राज्यपाल मुर्मू के बीच सहमति नहीं बन पा रही थी। अनुच्छेद-370 समाप्त होने के एक साल बाद जिस तरह का संदेश जाना चाहिए था उसके विपरीत मुर्मू के बयान विवादों की वजह बने।

सूत्रों का कहना है कि अनुच्छेद-370 के एक साल बाद राज्य में अब राजनीतिक कवायद की भी जरूरत है। जिस तरह से कुप्रचार का एजेंडा सीमापार से चल रहा है, उसका राजनीतिक जवाब यहां की जमीन से जाना चाहिए। मनोज सिन्हा को इसी रणनीति के तहत उप राज्यपाल बनाया गया है। सूत्रों ने कहा, जम्मू-कश्मीर को राजनीतिक व्यक्तित्व की जरूरत है, जिससे लोगों में भरोसा पैदा करने की राजनीतिक कवायद भी तेज हो। देर सबेर यहां के अलग-अलग समूहों से संवाद भी करना होगा।

गौरतलब है कि मुर्मू 4 जी और राज्य में चुनाव पर दिए गए बयानों की वजह से विवाद में आए थे। मुर्मू ने 370 समाप्त होने के एक साल पूरे होने के मौके पर बुधवार को अपने सभी मेल मुलाकात के कार्यक्रम रद्द कर दिए थे और वे जम्मू चले गए थे। 1985 बैच के आईएएस अफसर रहे मुर्मू गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव रहे थे। उन्हें पीएम मोदी का भरोसेमंद माना जाता है। इसलिए सम्भव है कि उन्हें कोई नई जिम्मेदारी दी जाए।

मनोज सिन्हा पर भरोसा क्‍यों

वहीं, मनोज सिन्हा उत्तर प्रदेश से संसद के सदस्य रहे हैं। वर्ष 1989-96 के बीच में वे राष्ट्रीय परिषद के सदस्य थे। वर्ष 1996 में मनोज सिन्हा 11वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए तथा वर्ष 1999 में उन्हें फिर से 13वीं लोकसभा के लिए पुनः निर्वाचित हुए। 1999 से 2000 के बीच वह योजना तथा वास्तुशिल्प विद्यापीठ की महापरिषद के सदस्य रहे तथा शासकीय आश्वासन समिति तथा ऊर्जा समिति के सदस्य भी रहे। वर्ष 2014 में वे 16वीं लोकसभा के लिए उत्तर प्रदेश के गाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। वह रेल राज्य मंत्री रहे हैं और बाद में उन्हें संचार मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार भी सौंपा गया था।

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