
संवाददाता
नई दिल्ली । वर्ष 2025 दिल्ली के लिए सिर्फ एक कैलेंडर नहीं, बल्कि एक कड़वा सच था जिसने पर्यावरणीय संतुलन की पोल खोलकर रख दी. पूरे साल के 349 दिनों में महज़ 3 दिन ‘अच्छी’ हवा मिलने का आंकड़ा… इस बात का गवाह है कि प्रदूषण अब एक मौसमी सितमदर्दी से बढ़कर एक स्थायी सांसों के तंत्र बन चुका है. जहरीली हवा के साथ-साथ यमुना की बदहाली और परिवहन व्यवस्था की असमानता ने मिलकर राजधानी को ऐसे संकट में धकेल दिया, जिससे निकलने की राह अब और मुश्किल होती दिख रही है. साल 2025 में प्रदूषण के लिहाज से राजधानी दिल्ली कैसी रही.
वायु प्रदूषण, पानी और परिवहन के लिहाज से मुश्किलों भरा रहा साल 2025
वर्ष 2025 नई दिल्ली के लिए पर्यावरणीय संकटों का आईना बनकर सामने आया. हवा, पानी व परिवहन—तीनों ही बुनियादी मोर्चों पर राजधानी दिल्ली पूरे साल दबाव में रही. वायु प्रदूषण अब मौसमी नहीं, बल्कि स्थायी समस्या बन चुका है. स्मॉग, जहरीले कण व बढ़ती बीमारियों ने बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को प्रभावित किया.

वहीं, दूसरी ओर यमुना नदी की हालत भी चिंताजनक बनी रही. बाढ़ के दौरान कुछ समय के लिए प्रदूषण कम जरूर हुआ, लेकिन अनट्रीटेड सीवेज व औद्योगिक कचरे ने पानी को फिर जहरीला बना दिया है.
परिवहन के मोर्चे पर मेट्रो ने राहत दी है, लेकिन बसों की कमी व इलेक्ट्रिक बसों की अपर्याप्त संख्या ने निजी वाहनों को बढ़ावा दिया, जिससे प्रदूषण और बढ़ा है. कुल मिलाकर 2025 दिल्ली के लिए चेतावनी भरा साल साबित हुआ, जहां विकास व पर्यावरण के संतुलन की चुनौती और गहरी हो गई है.
राजधानी की हवा का पूरी साल का लेखा-जोखा
साल 2025 खत्म होने में अभी कुछ दिन बाकी हैं, लेकिन राजधानी की हवा का पूरा लेखा-जोखा पहले ही एक कड़वी सच्चाई पेश कर चुका है. 1 जनवरी से 15 दिसंबर 2025 तक के 349 दिनों में राजधानी दिल्ली में सिर्फ 3 दिन ही लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का मौका मिला. AQI.in के आंकड़ों पर गौर करें तो पूरे साल में महज 0.86 फीसदी दिन ही ऐसे रहे, जब हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सुरक्षित सीमा के भीतर थी. बाकी 99 फीसदी से ज्यादा समय दिल्ली की हवा स्वास्थ्य के लिए जोखिम बनी रही. यानी की राजधानी दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं रही. भले ही केंद्र व राज्य सरकार की तरफ से प्रदूषण की रोकथाम के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं लेकिन लोगों को प्रदूषण से बहुत ज्यादा राहत नहीं मिली.
इस साल 2025 में सिर्फ 0.86 प्रतिशत दिन ही विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक के भीरत हवा की गुणवत्ता रही. दिल्ली की हवा स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरी रही. इस प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियों, हृदय रोग, त्वचा रोग और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ गया है. खासतौर पर बच्चों, बुजुर्गों व पहले से बीमार लोगों के लिए प्रदूषण बेहद घातक है.
जनवरी से मार्च तक हवा ज्यादातर ‘Poor’ और ‘Unhealthy’ रही. जुलाई-अगस्त के बीच में थोड़ी राहत दिखी, क्योंकि बारिश के कारण वायुमंडल में मौजूद प्रदूषण के करण धुल गए. लेकिन यह राहत बहुत दिनों तक नहीं रही. अक्टूबर से नवंबर में प्रदूषण तेजी से बढ़ा. कई दिन ‘Severe’ व ‘Hazardous’ श्रेणी में हवा की गुणवत्ता पहुंच गई. यानी मौसम बदलता रहा, लेकिन सांस का संकट पूरे साल बना रहा. लोगों को प्रदूषण से राहत नहीं मिली.
साल 2025 के आंकड़े साफ बताते हैं कि नई दिल्ली में वायु प्रदूषण अब मौसमी खबर नहीं, बल्कि स्थायी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है. जब पूरे 349 दिनों में सिर्फ 3 दिन ही सुरक्षित हवा मिले, तो ‘सुधार’ के दावों पर सवाल उठना स्वाभाविक है. सवाल अब यह नहीं है कि दिल्ली की हवा कितनी खराब है, बल्कि यह है कि कब और कैसे इसे सचमुच सुरक्षित बनाया जाएगा.
यमुना में बाढ़ ने प्रदूषण से दी राहत, फिर बढ़ा प्रदूषण
वर्ष 2025 में यमुना नदी की जल गुणवत्ता गंभीर बनी रही. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के आंकड़ों पर गौर करें तो दिल्ली में यमुना के 22 किलोमीटर के हिस्से में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) कई स्थानों पर 60 से 127 mg/L तक दर्ज की गई है, जबकि सुरक्षित मानक 3 mg/L है. यानी कि नदी का पानी मानकों से 20 से 40 गुना ज्यादा प्रदूषित है.
प्रदूषण के कारण यमुना नदी में जलीय जीवों का जीवन संभव नहीं है. हालांकि दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई के लिए काम किया है. लेकिन इस सफाई से पानी की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है. हालांकि 2025 में मॉनसून के दौरान यमुना में बाढ़ आई और जलस्तर बढ़ने से नदी में अस्थायी रूप से पानी का प्रवाह बढ़ा. इससे कुछ समय के लिए झाग और गंध में कमी दिखी, लेकिन बाढ़ उतरते ही प्रदूषण फिर पुराने स्तर पर लौट आया. विशेषज्ञों की मानें तो अनट्रीटेड सीवेज व औद्योगिक अपशिष्ट के लगातार गिरने से बाढ़ भी यमुना को स्थायी राहत नहीं दे पाई है.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट व प्रदूषण: बसों की कमी बन रही चुनौती
राजधानी दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की भूमिका बेहद अहम रहती है. हर दिन 75 से 78 लाख यात्री दिल्ली मेट्रो का इस्तेमाल कर गंतव्य पर पहुंचते हैं और मेट्रो नेटवर्क का लगातार विस्तार निजी वाहनों पर निर्भरता घटाने में मदद कर रहा है. वहीं, दूसरी ओर करीब 40 लाख लोग रोजाना बसों से सफर करते हैं, लेकिन इस साल पुरानी सीएनजी की बसों के हटने से बस सेवा पर दबाव बढ़ा है. खासकर 12 मीटर की इलेक्ट्रिक बसों की कमी साफ नजर आ रही है. इससे यात्रियों को परेशानी हो रही है और मजबूरी में लोग निजी वाहन सड़कों पर ला रहे हैं जो प्रदूषण बढ़ाने का कारण बन रहा है.
सरकार कई ऐतिहासिक कार्य़ों का आने वाले सालों मे सकात्मक परिणाम मिलेंगे
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के बोर्ड सदस्या अनिल कुमार गुप्ता ने कहा कि, “वर्ष 2025 प्रदूषण के लिहाज से पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर रहा है. एनसीआर में जनवरी से अगस्त 2025 के बीच वायु गुणवत्ता अपेक्षाकृत अच्छी रही. आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष करीब 80 दिन वायु गुणवत्ता संतोषजनक श्रेणी में रही जबकि 2024 में ऐसे दिन 66 थे. वहीं गंभीर श्रेणी में वायु प्रदूषण के दिन घटकर सिर्फ तीन रह गए, जो पिछले साल 11 दिन थे. वहीं दूसरी ओर यमुना के पानी में डिज़ॉल्व्ड ऑक्सीजन बेहतर रही, बीओडी नियंत्रित स्तर पर रही, अमोनिया की मात्रा कम पाई गई और पीएच भी संतुलित रहा. इसी के चलते लाखों लोगों ने नदी किनारे छठ पूजा मनाई.
“सरकार स्रोतों को खत्म करने, डस्ट मिटिगेशन, नए जंगल, मियावाकी फॉरेस्ट, वेस्ट-टू-एनर्जी, सीएंडडी वेस्ट प्रबंधन व मैकेनिकल स्वीपिंग जैसे कदम उठा रही है. आने वाले वर्षों में इसके और सकारात्मक परिणाम दिखेंगे.” – डॉ. अनिल कुमार गुप्ता, बोर्ड सदस्य, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति



