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दिव्यांग बच्चों के जीवन में शिक्षा की अलख जगा रही गाजियाबाद की ऋचा, आत्मनिर्भर बनाने पर दे रहीं जोर

अपनी संस्था के माध्यम से ऋचा दिव्यांग बच्चों को न सिर्फ शिक्षित करती हैं, बल्कि अन्य तरह की भी मदद करती हैं.

संवाददाता

गाजियाबाद। किसी भी व्यक्ति के जीवन में माता-पिता के बाद उसके जीवन को आकार देने में शिक्षक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. बात जब दिव्यांग बच्चों की हो तो उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. शिक्षक दिवस 2025 के अवसर पर हम आपको एक ऐसी शिक्षिका से रू-ब-रू कराने जा रहे हैं, जो 11 वर्षों से दिव्यांग बच्चों के जीवन में बदलाव की बयार लाकर शिक्षा की अलख जगा रही हैं.

गाजियाबाद की रहने वाली ऋचा बल्लभ खुलबै नींव शक्ति संस्था की संस्थापक हैं और दिव्यांग बच्चों के लिए ‘देवभागीरथी स्पेशल स्कूल’ का संचालन करती हैं. उन्होंने अपना सफर बतौर गणित की शिक्षिका के तौर पर शुरू किया था, लेकिन शायद जिंदगी को कुछ और ही मंजूर था. उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया, जब उन्होंने अपना वक्त दिव्यांग बच्चों के लिए कार्य करने में समर्पित कर दिया.

ऐसे हुई शुरुआत

शुरुआत में ऋचा निजी स्कूल में बच्चों को गणित पढ़ाया करती थी. स्कूल परिसर दो भागों में बंटा हुआ था, जहां भाग में सामान्य बच्चों की पढ़ाई होती थी, वहीं दूसरे हिस्से में ‘स्पेशली एबल्ड’ बच्चों के लिए क्लासेज चलती थी. एक दिन उनके मन में सवाल उठा कि दिव्यांग बच्चों की सामान्य बच्चों से बातचीत नहीं होती. इसे देखते हुए उन्होंने कुछ एक्टिविटीज की शुरुआत की जिसमें सामान्य और दिव्यांग बच्चों दोनों बच्चों को शामिल किया गया. कुछ ही वक्त में बच्चे आपस में बातचीत करने लगे और एक दूसरे की भाषा समझने लगे. बस यहीं से उन्होंने दिव्यांग बच्चों के लिए कुछ करने की ठान ली.

बिना किसी फीस के देती हैं शिक्षा

लंबे समय तक शिक्षिका के तौर पर काम करने के बाद ऋचा ने नींव शक्ति संस्थान की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत देवभागीरथी स्पेशल स्कूल शुरू किया गया. ऋचा कहती हैं, ‘मैंने देखा है कि माता-पिता अपने दिव्यांग बच्चों को स्कूल भेजना तो चाहते हैं, लेकिन कई बार वे निजी स्कूलों की भारी भरकम फीस और जरूरत का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होते हैं. हमारे स्कूल में गरीब बच्चों से फीस नहीं ली जाती है. स्कूल में सिर्फ पांच ही बच्चे हैं जो की फीस देते हैं और बाकी सभी बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है. साथ ही स्पेशलाइज्ड बच्चों को विभिन्न प्रकार की ट्रेनिंग और फिजियोथेरेपी भी उपलब्ध कराई जाती है.”

कई संस्थानों से ऋचा को किया जा चुका है पुरस्कृत

दिव्यांग बच्चे को दी नई जिंदगी

उन्होंने बताया, सिरण एक सेरेब्रल पाल्सी (CP) से पीड़ित दिव्यांग बच्चा है, जो एक अत्यंत गरीब परिवार से है. उसके फेफड़ों में पानी भर जाने और मस्तिष्क में सिस्ट बनने के कारण सरकारी अस्पताल ने इलाज से हाथ खींच लिए थे. ऐसे समय में मैंने पहल की और सिरण को गाजियाबाद के अस्पताल में भर्ती कराया. 20 दिनों तक चले संघर्षपूर्ण इलाज के बाद आज सिरण स्वस्थ है और मेरे ही स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर रहा है.

मल्टीनेशनल कंपनी में कर रहे नौकरी

हितेन की कहानी भी काफी प्रेरणादायक है. ऋचा बताती हैं, ‘हितेन की पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी और परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था. हितेन हमारे संपर्क में आए, जिसके बाद हमने उन्हें शिक्षा देनी शुरू की. हितेन सुनने और बोलने में पूरी तरह से असमर्थ थे. कुछ वर्ष तक हमारे स्कूल में शिक्षा ली और विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराए गए. प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने NIOS से कक्षा 10 पास की. मौजूदा समय में हितेन फ्लिप्कार्ट में नौकरी कर रहे हैं. नौकरी के साथ साथ अब वे NIOS बोर्ड से 12वीं कक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं.

रूची के अनुसार शिक्षा
उन्होंने बताया, हमारी संस्था दिव्यांग बच्चों की रुचि और क्षमता के अनुसार उनपर काम करती है. जो अकैडमिक रूप से सशक्त होते हैं उन्हें विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षा दी जाती है, ताकि आगे चलकर वे सरकारी नौकरी में भी जा सकें. वहीं जो बच्चे आर्ट एंड क्राफ्ट में बेहतर है उन्हें टेलरिंग आदि का प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की कोशिश की जाती है. कुल मिलाकर हमारा प्रयास रहता है कि किसी न किसी तरह दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके, ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने पैरों पर खड़े होकर समाज में अपना योगदान दे सकें.
कई संस्थानों से ऋचा को किया जा चुका है पुरस्कृत
कई संस्थानों से ऋचा को किया जा चुका है पुरस्कृत

शिक्षा के अलावा भी दिव्यांगों की मदद

उन्होंने आगे बताया, लक्ष्मी, मुरादनगर के पास एक गांव की निवासी है, जो अपने परिवार के साथ गांव में कूड़ा और गोबर इकट्ठा करने का कार्य करती थी. एक दिन कार्य करते समय उसका हाथ चारा काटने वाली मशीन में आ गया, जिससे उसका आधा हाथ कट गया. ग्रामीण परिवेश और सीमित जानकारी के कारण लक्ष्मी को सरकारी अस्पताल में केवल प्राथमिक उपचार मिला और उसे अपने कटे हुए हाथ के साथ जीना पड़ रहा था. इसके बाद पं. दीन दयाल उपाध्याय योजना के साथ समन्वय करते हुए लक्ष्मी को कृत्रिम हाथ (प्रोस्थेटिक हैंड) लगवाया, जिससे वह आज अपने अधिकांश काम खुद ही कर पाती हैं. इतना ही नहीं अब तक 5 हजार से अधिक दिव्यांग बच्चों के लिए यूडीआईडी (यूनीक डिसेबिलिटी आईडेंटिटी) कार्ड भी बनवाए.

 

 

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