
संवाददाता
गाजियाबाद । गाजियाबाद नगर निगम द्वारा भेजे गए बढ़े हुए हाउस टैक्स के नोटिसों के विरोध में नगर निगम पार्षदों का धरना लगातार दूसरे दिन भी जारी है।बता दे कि शुक्रवार की रात सभी पार्षद नगर निगम कार्यालय में डटे रहे और शनिवार यानि की 19 जुलाई सुबह भी उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहा। पार्षदों की मांग है कि 30 जून को हुई बोर्ड बैठक के मिनट्स की आधिकारिक प्रति दी जाए और टैक्स वृद्धि को निरस्त करने के फैसले का पालन किया जाए।

अधिकारियों की मनमानी नहीं सहेगा जनप्रतिनिधि वर्ग – पार्षदों का आरोप
गौरतलब है कि 30 जून को हुई नगर निगम बोर्ड बैठक में सांसद, मंत्री, विधायक, महापौर और सभी पार्षदों ने सर्वसम्मति से हाउस टैक्स की वृद्धि को रद्द कर दिया था। इसके बावजूद नगर निगम प्रशासन द्वारा शहरवासियों को बढ़े हुए टैक्स के नोटिस भेजे जा रहे हैं। इस कार्रवाई को पार्षदों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया और बोर्ड के फैसले का अपमान बताया है।धरना दे रहे पार्षदों ने बताया कि उन्होंने 4 जुलाई को अधिकारियों से बैठक के निर्णय की प्रमाणिक प्रति मांगी थी। अधिकारियों ने दस्तावेज देने का आश्वासन दिया, लेकिन 14 जुलाई को हुई दोबारा बैठक में भी केवल आश्वासन ही मिला। इससे नाराज होकर पार्षदों ने नगर निगम परिसर में धरना शुरू कर दिया।
व्यापार मंडलों ने पार्षदों के धरने को दिया समर्थन
इस आंदोलन को अब शहर के व्यापार मंडलों का भी समर्थन मिल गया है। गाजियाबाद व्यापार मंडल के सचिव अशोक चावला ने कहा कि पार्षद जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए व्यापार मंडल ने भी धरने में भाग लेकर अपना समर्थन जताया है। व्यापारियों ने धरना स्थल पर पहुंचकर पार्षदों के साथ प्रदर्शन किया।पार्षद पति मनोज गोयल ने कहा कि जब तक बोर्ड बैठक के फैसले की आधिकारिक पुष्टि नहीं की जाती और निर्णयों को अमल में नहीं लाया जाता, तब तक वे अपनी अगली रणनीति तय नहीं करेंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर मांगे नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
पार्षदों का यह भी आरोप है कि निगम अधिकारी जनप्रतिनिधियों को नजरअंदाज कर मनमानी कर रहे हैं। उनके वार्डों में विकास कार्यों को रोका जा रहा है, टेंडर नहीं जारी किए जा रहे और जनता की परेशानियों को कोई सुनने वाला नहीं है।
शुक्रवार को नगर आयुक्त धरना स्थल पर पहुंचे और पार्षदों से बातचीत की। हालांकि, पार्षदों ने आयुक्त के आश्वासन को नकारते हुए कहा कि जब तक लिखित में निर्णय की प्रति नहीं दी जाती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।
यह मामला अब गाजियाबाद शहर की बड़ी प्रशासनिक चुनौती बन चुका है, जिसमें जनप्रतिनिधि और नगर निगम आमने-सामने हैं। अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह मामला और अधिक उग्र हो सकता है।



