
विशेष संवाददाता
गाजियाबाद । काले कोट वाले जिन मिलार्ड से बड़े-बड़े अपराधी पनाह और रहम की भीख मांगते हैं वहीं जज साहब इन दिनों आतंक के साए में जी रहे हैं। दरअसल मिलार्ड को किसी अपराधी या इंसान से खतरा नहीं है बल्कि इनका डर है अपने आसपास मंडराते बंदरों से। जी हां इन दिनों गाजियाबाद कोर्ट में अधिवक्ता और फरियादी ही नहीं मजिस्ट्रेट और जज साहब भी इन बंदरों के आंतक के साए में जी रहे हैं।
दरअसल अब तक तो गाजियाद बाद की कोर्ट में अधिवक्ताओं के चैंबर ही बंदरो से असुरक्षित थे लेकिन इन दिनों कपि महाराज की दृष्टि जज साहिबानों पर भी टेढी हो गई है। पिछले कई सालों से गाजियाबाद कचहरी में बंदरो का आतंक बना हुआ है। कोर्ट में आने वाले मुवक्किलों सें लेकर बंदर वकीलों के चैंबरों तक में घुसकर उत्पात मचाते रहे हैं। कई बार उनके उत्पात से नुकसान होंने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं। जिनकी शिकायतें नगर निगम से की जाती रही है। लेकिन बंदरों की टोलियों से निजात नहीं मिली ।
इन दिनों बंदरों के आतंक से कोर्ट के मजिस्ट्रेट और जजों के साथ उनके कार्यालय का स्टाफ भी आतंकित है। कोर्ट की कार्यवाही के दौरान अक्सर बंदर खिडकियों के रास्ते जजों के निजी चैंबर व कोर्ट रूम तक पहुंचकर उत्पात मचा रहे हैं। कभी वे कोई जरूरी फाइलें उठाकर उन्हें इधर उधर पटक देते हैं तो कभी वहां रखा सामान बिखेर देते हैं। ऐसा कई जजों के निजी चैंबर व कोर्ट रूम में हो चुका है।
अधिवक्ताओं को कहना हैं कि गुरूवार को भी एक बंदर एक जज साहब के कोर्ट रूम में घुस गया। उसने न सिर्फ वहां रखी अदालती फाइलों को उलटा पलटा बल्कि हिम्मत देखिए कि जिन जज साहब से बड़े बड़े सूरमा गिडगिडाकर रहम की भीख मांगते हैं। बंदर महराज में उन्हीं जज साहब के कोर्ट रूम में मल कर दिया। अब उन पर भला किसका बस चल सकता है। जज साहब ने भी देखा और एक पल के लिए मुस्कराते हुए अपने काम में जुट गए।

सवाल ये नहीं कि बंदर ने कोर्ट रूम में आकर मल कर दिया या फाइलों से छेडछाड कर दी। सवाल ये हैं कि अदालत जैसे अतिसुरक्षित परिसर में जहां दावे किए जाते हैं कि बिना इजाजत के परिंदा भी पर नहीं मार सकता। वहां लंबे समय से बंदर आतंक का प्रर्याय बने हुए हैं और इसके बावजूद प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। दिलचस्प बात ये हैं कि कचहरी परिसर से जिलाधिकारी के साथ जिले के तमाम प्रशासनिक अफसरों के दफ्तर हैं। कचहरी में ही हजारों वकील हैं जो सुबह से शाम तक अपने चैंबरों में बैठकर काम करते हैं। उनके पास मिलने के लिए उनके मुवक्किल आते रहते हैं। जो वकील अपने साथ हुई किसी मामूली सी ज्यादती पर पुलिस से लेकर प्रशासन तक को हिला डालते हैं और हडताल पर चले जाते हैं। वे भी बंदरो के आतंक के आगे बेबस दिखाई देते हैं।
गाजियाबाद कोर्ट में बंदरों के आतंक की खबरें अक्सर आती रही हैं। हाल ही में, एक घटना में, एक बंदर ने जमानत के लिए आए एक व्यक्ति के कागजात छीनकर फाड़ दिए, जिससे उसकी जमानत अटक गई। कोर्ट परिसर में खाने पीने की दुकान लगाने वालों और टाइपिंग करने वालों का कहना है कि अक्सर कहीं से भी बंदर आकर उनके सामान उठा ले जाते हैं। कोर्ट में काम करने वाले कर्मचारियों और वकीलों का कहना है कि अक्सर नगर निगम को बंदर के आतंक से मुक्ति दिलानें की शिकायते की जाती है लेकिल दो चार दिन अभियान चलता है तो बंदर लापता हो जाते हैं अभियान शांत होते ही बंदरों के झुंड फिर नजर आने लगते हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट मे कुछ महीनो पहले दायर हुई एक जनहित याचिका के मुताबिक जिले में 55 हजार से अधिक बंदर हैं और ये संख्या तेजी से बढ रही है। नगर निगम का दावा है कि बंदर की संख्या दिल्ली की तरफ से बंदर गाजियाबाद में छोडे जाने के कारण अनियंत्रित हुई है। हाइकोर्ट ने इस याचिका के आधार पर गाजियाबाद में बंदरों की समस्या पर डीएम, जीडीए व नगर निगम के अफसरों से जवाब मांगा है। कोर्ट ने हलफनामा के जरिए पूछा कि बंदरों की समस्या के समाधान के लिए क्या प्रयास किए गए हैं। भविष्य में इस समस्या से निपटने की क्या योजना है।
अब आप समझ ही सकते हैं कि जिन कपि महारज के आतंक के कारण गाजियाबाद कोर्ट के वकील और जज साहब परेशान है वे तो पहले ही जिला प्रशासन की परेशानी का सबब बने हुए है और इनके आतंक की गूंज हाइकोर्ट तक पहुंच चुकी है।



