
विशेष संवाददाता
हरिद्वार। हरिद्वार में नगर निगम के एक बड़े भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कार्रवाई करते हुए जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी और नगर निगम आयुक्त समेत कुल 12 अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है. ये पहली बार है जब पद पर रहते हुए एक जिलाधिकारी, नगर निगम आयुक्त और एसडीएम को एक साथ सस्पेंड किया गया है.
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, ‘हमारी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के तहत यह कार्रवाई राज्य की प्रशासनिक कार्यशैली में एक निर्णायक बदलाव मानी जा रही है.’ उन्होंने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि चाहे अधिकारी कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, भ्रष्टाचार किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
इस घोटाले की आगे की जांच अब विजिलेंस विभाग को सौंप दी गई है. मुख्यमंत्री कार्यालय से जानकारी के अनुसार, वरुण चौधरी द्वारा दी गई सभी वित्तीय स्वीकृतियों की जांच भी विजिलेंस करेगी.
मामला क्या है?
इस घोटाले में हरिद्वार नगर निगम ने 14 करोड़ रुपये की कीमत वाली एक जमीन को 54 करोड़ रुपये में खरीदा जो वित्तीय अनियमितताओं का गंभीर मामला है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आदेश पर इस मामले की जांच उत्तराखंड शासन में सचिन रणवीर चौहान ने की. रणवीर चौहान ने हरिद्वार जाकर मामले की पड़ताल कर 100 पेजों की रिपोर्ट शासन को सौंपी, जिसके आधार पर ये कार्रवाई की गई है.
जांच रिपोर्ट में कई खुलासे
जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि जिस जमीन को खरीदा गया, उसकी प्रक्रिया कृषि भूमि के दामों पर शुरू की गई थी. लेकिन अंत में उसे वाणिज्यिक दरों पर खरीदा गया. इस मामले में लैंड कमिटी नहीं बनाई गई थी.
रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एसडीएम अजयवीर सिंह ने मात्र 2 से 3 दिनों में 143 की पूरी कार्रिया पूरी कर दी और फाइल को जल्दी निपटाने के लिए अपने स्टेनो को राजस्व अभिमत (Revenue Opinion) देने का काम सौंप दिया. ये प्रक्रिया न केवल असामान्य रूप से तेज़ थी, बल्कि नियमों की अनदेखी भी की गई. जमीन कूड़े के ढेर के पास स्थित थी और न तो इसकी तत्काल कोई जरूरत थी, न ही भूमि क्रय के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई. सर्किल रेट के आधार पर जमीन खरीद कर भारी वित्तीय अनियमितता की गई.
जांच रिपोर्ट में पाया गया कि इस सौदे में भूमि चयन, मूल्य निर्धारण, प्रक्रिया अनुपालन और भू उपयोग परिवर्तन जैसे तमाम स्तरों पर गंभीर गड़बड़ियां हुईं.
सस्पेंड किए गए अधिकारी
कर्मेंद्र सिंह (DM, हरिद्वार) – भूमि क्रय की अनुमति और प्रशासनिक स्वीकृति में संदेहास्पद भूमिका.
वरुण चौधरी (पूर्व नगर आयुक्त, हरिद्वार) – बिना प्रक्रिया के प्रस्ताव पारित किया और वित्तीय अनियमितताओं में भूमिका निभाई.
अजयवीर सिंह (PCS, SDM) – निरीक्षण और सत्यापन में लापरवाही, जिससे गलत रिपोर्ट शासन तक पहुंची.
अन्य निलंबित अधिकारी
निकिता बिष्ट – वरिष्ठ वित्त अधिकारी, नगर निगम
विक्की – वरिष्ठ वैयक्तिक सहायक
राजेश कुमार – कानूनगो, रजिस्ट्रार
कमलदास – मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, तहसील
पहले से निलंबित अधिकारी
रविंद्र कुमार दयाल – प्रभारी सहायक नगर आयुक्त
आनंद सिंह मिश्रवाण – प्रभारी अधिशासी अभियंता
लक्ष्मीकांत भट्ट – कर एवं राजस्व अधीक्षक
दिनेश चंद्र कांडपाल – अवर अभियंता
इसके अलावा सेवानिवृत्त संपत्ति लिपिक वेदपाल का सेवा विस्तार समाप्त कर उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है.
डीएम की भूमिका पर सवाल
रिपोर्ट में ज़िक्र है कि जिलाधिकारी ने प्रशासनिक प्रमुख होते हुए लैंड पुलिंग कमेटी की अनुमति के बिना ही ज़मीन की खरीद की अनुमति दे दी, जबकि इस मामले में भूमि पुलिंग बोर्ड के गठन का इंतजार किया जा सकता था। जांच रिपोर्ट में सभी अनियमितताओं की पुष्टि के बाद, अब इन तीनों अधिकारियों पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है.
लैंड पुलिंग कमेटी और धारा 143
लैंड पुलिंग कमेटी एक सरकारी निकाय होती है जो शहरी विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और संतुलन सुनिश्चित करती है। इस कमेटी की मंजूरी के बिना किसी भूमि को निजी या वाणिज्यिक उपयोग के लिए नहीं खरीदा जा सकता। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि भूमि खरीद, उपयोग और विकास सभी नियमों के अनुसार हो और किसी भी प्रकार की भ्रष्टाचार या मनमानी से बचा जा सके.
क्या है धारा 143?
भारतीय राजस्व संहिता की धारा 143 (Section 143 of UP Revenue Code) के तहत कृषि भूमि के उपयोग को गैर-कृषि (जैसे आवासीय, वाणिज्यिक आदि) में परिवर्तित करने की अनुमति दी जाती है. इसका तात्पर्य है कि किसी भी भूमि का उपयोग बदलने से पहले जिलाधिकारी या संबंधित अधिकारी से अनुमति लेनी होती है, लेकिन इस मामले में एसडीएम ने यह पूरी प्रक्रिया मात्र 2-3 दिनों में पूरी कर दी, जो संदेह के घेरे में है.