latest-newsअपराधराज्य

यौन शोषण के आरोपी प्रज्वल रेवन्ना का हो सकता है पोटेंसी टेस्ट

यौन शोषण के आरोपों के मामलों में कितनी जरूरी ये जांच?

संवाददाता

बंगलुरु । जनता दल सेकुलर के सांसद प्रज्वल रेवन्ना के शुक्रवार को जर्मनी से लौटते ही उन्हें स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने हिरासत में ले लिया. ये टीम प्रज्वल पर लगे यौन उत्पीड़न मामलों की जांच करेगी. माना जा रहा है कि इस दौरान निलंबित सांसद का पोटेंसी टेस्ट भी हो सकता है. रेप के दोषी आसाराम का भी ये टेस्ट हुआ था, जब उसने उम्र का हवाला देते हुए खुद को नपुंसक बताया.

इस टेस्ट में देखा जाता है कि कोई पुरुष सामान्य हालातों में यौन संबंधों के लिए शारीरिक तौर पर कितना तैयार रहता है. यह एक तरह की मेडिकल जांच है, जो तलाक, पैटरनिटी के मामलों में सबूत के तौर पर दिखाई जाती है. जैसे पत्नी नपुंसकता के आधार पर तलाक की मांग करे, और अगला पक्ष राजी न हो, तब ये जांच भी हो सकती है.

यौन शोषण के मामलों में कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) का सेक्शन 53 पोटेंसी टेस्ट पर उतना जोर नहीं देता. उसकी बजाए खून, खून के धब्बे, वीर्य, स्पटम, पसीना, बालों और नाखूनों के सैंपल की जांच होती है. डॉक्टर तय करते हैं कि कौन कौन सी जांचें की जाएंगी.

ये तीन चरणों में होता है, जो इसपर तय होता है कि कितने मेडिकल उपकरण उपलब्ध हैं.

  • पहला है सीमन एनालिसिस या वीर्य की जांच. इस दौरान स्पर्म काउंट और मोबिलिटी देखी जाती है. मेडिको-लीगल केसेज की बात छोड़ दें तो भी ये जांच फर्टिलिटी को परखने के लिए भी होती रही.
  • पीनाइल डॉपलर अल्ट्रासाउंड में पुरुषों के प्राइवेट पार्ट के भीतर ब्लड फ्लो को देखा जाता है. ये अल्ट्रासाउंड की मदद से होता है. इससे इरेक्टाइल डिसफंक्शन का पता लगता है.
  • विजुअल इरेक्शन एग्जामिशनेशन भी किया जाता है.

रेप केस में कितना जरूरी या गैरजरूरी है टेस्ट

यौन उत्पीड़न के आरोप लगने पर आरोपी पक्ष का वकील कोर्ट में पोटेंसी टेस्ट की रिपोर्ट भी लगाता है, ये कहते हुए कि उनका मुवक्किल यौन संबंध बनाने के लायक नहीं है. हालांकि बचाव पक्ष की ये दलील खास काम की नहीं है. पोटेंसी स्थाई नहीं. कई बार ये मानसिक स्थिति के अनुसार भी बदलती है. सिर्फ किसी खास समय पर पुरुष यौन संबंधों के लिए असमर्थ है, इसका मतलब ये नहीं कि वो बाकी समय भी वैसा ही रहेगा. कोर्ट में जाने पर भी ये रिपोर्ट्स सरसरी तौर पर ही देखी जाती हैं.

बलात्कार की परिभाषा ब्रॉड होने से घटी वैल्यू

साल 2013 से पहले पोटेंसी टेस्ट की अहमियत थी. आज से दस साल पहले कानून में रेप की परिभाषा बदली, जिसके बाद अदालत में इस जांच की वैल्यू कमजोर हो गई. पहले इंडियन पीनल कोड (IPC) में रेप केवल तभी माना जाता था, जब इंटरकोर्स हुआ हो. अब सेक्शन 375 की परिभाषा में कई दूसरी चीजें जुड़ी हैं, जिसमें नॉन-पेनिट्रेटिव रेप भी शामिल है. इंटरकोर्स इसका केवल एक हिस्सा है. ऐसे में पोटेंसी टेस्ट कोई सबूत नहीं रहा. मानवाधिकार संगठन भी पोटेंसी टेस्ट का विरोध करते आए हैं कि इससे निजता का हनन होता है.

साल 2013 में नाबालिग लड़की ने आसाराम पर रेप के आरोप लगाए थे, तब भी दोषी का पोटेंसी टेस्ट हुआ था. दरअसल दोषी बार-बार दावा कर रहा था कि उम्र की वजह से वो संबंध बनाने में असमर्थ है, ऐसे में बलात्कार कैसे कर सकता है. इन्हीं दावों की जांच के लिए पुलिस ने पोटेंसी टेस्ट किया था, जिसमें आसाराम गलत साबित हुआ.

प्रज्वल का क्यों हो सकता है टेस्ट

निलंबित सांसद के मामले में यह जांच ब्रॉडर इनवेस्टिगेशन का हिस्सा हो सकती है, जिसमें बहुत से दूसरे मेडिकल टेस्ट भी होंगे. जांच से आरोपी की शारीरिक क्षमता का थोड़ा-बहुत अंदाजा हो सकता है, लेकिन ये निश्चित सबूत नहीं होगा, बल्कि पीड़िताओं के दावे और बाकी लीगल प्रमाण ज्यादा मायने रखेंगे.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com