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सोशल मीडिया के मोटिवेशनल मदारियों का फैलता जाल

सुनील वर्मा

एक ऐसा व्यक्ति जिसकी अभी पहली पत्नी से अदालती लड़ाई चल रही हो और वह दूसरी शादी कर ले। एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी मां से रोज झगड़ा करता हो। एक ऐसा व्यक्ति जो एक दिन पहले जिसे पत्नी बनाकर घर में लाया हो उसे इतना मारे कि उसके शरीर पर घाव बन जाए, उसे कमरे में बंद कर दे वह भी सिर्फ इस बात पर कि वह मां से लड़ाई के दौरान बीच बचाव करने पहुंच गयी हो तो क्या आप उससे कौनसी प्रेरणा या मोटिवेशन ग्रहण करेंगे?

सामान्य जीवन में तो कदापि नहीं लेकिन सोशल मीडिया की दिखावटी दुनिया हो तो ऐसे अपराधी भी अपने आपको बतौर आदर्श प्रस्तुत कर लेते हैं। लाखों करोड़ों लोग उनको सुनते हैं। इस फॉलोइंग के ऐवज में वो खुद भी लाखों करोड़ों कमाता है और देखते ही देखते सोशल मीडिया का सेलिब्रिटी बन जाता है। अपने आपको मोटिवेशनल स्पीकर कहने लगता है और कुछ लोग उससे मोटिवेट भी होने लगते हैं। सोशल मीडिया की बौनी दुनिया से उपजे विवेक बिन्द्रा जैसे लोगों की यही कहानी है। ऐसे कथित मोटिवेशनल स्पीकर दुनिया को तो ज्ञान बांटते हैं लेकिन उस ज्ञान का उनके अपने जीवन में कोई प्रयोग नहीं होता है।

सोशल मीडिया की भसड़ में पैदा होनेवाले ऐसे मोटिवेशनल स्पीकर, सेलिब्रिटी एक दिखावटी आभामंडल रचते हैं और भोले भाले सामान्य लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इसके पीछे ऐसे लोगों का उद्देश्य किसी को जीवन की दिशा दिखाना नहीं बल्कि खुद पैसा कमाना होता है। इसके लिए ये लोग अपनी हाई फाई डिग्री का प्रदर्शन करते हैं, कई बार अपने आपको ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं जो सबसे सुलझा हुआ इंसान नजर आता है। लेकिन पर्दे के पीछे की असली कहानी कुछ और ही होती है।

याद करिए एक ऐसे ही मोटिवेशनल स्पीकर शिव खेरा को। पहली बार भारत में शिव खेरा ने अपने आपको मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में प्रस्तुत किया था। उनकी एक किताब हर दुकान पर नजर आती थी “यू कैन विन।” यानी आप जीत सकते हैं। उनकी किताब पढ़कर कितने लोग जीवन में जीत गये यह तो पता नहीं लेकिन खुद शिव खेरा पर दूसरों की किताब से कन्टेन्ट चोरी करने का आरोप लग गया। यानी उनकी किताब में ज्यादातर बातें इधर उधर से लेकर डाल दी गयी थीं और खेरा ने उस पर अपना कॉपीराइट लगा दिया था। एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट अमृतलाल ने दावा किया था कि खेड़ा की बहुचर्चित किताब में उनकी किताब के हिस्से डाले गये हैं जो खेड़ा की किताब छपने से आठ साल पहले लिखी गई थी।

मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर हमारे यहां ऐसे आदर्श चरित्र होते थे, जिन्होंने अपने जीवन को अपना संदेश बनाया हो। फिर चाहे वह कोई साधु महात्मा हो या फिर समाज का कोई व्यक्ति। हम उससे प्रेरणा लेते हैं जो जीवन के कठिन आदर्शों का सिर्फ उपदेश नहीं करता बल्कि उसे अपने जीवन में उतारता है। लेकिन कॉरपोरेट पूंजीवाद के उभार के साथ ही मोटिवेशनल स्पीकर्स की एक फौज पैदा होने लगी, जो यह दावा करने लगे कि इस पूंजीवादी व्यवस्था में आप सुखी कैसे रह सकते हैं। कुछ हैं जो यह बताते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे कमा सकते हैं तो कुछ यह बताते हैं कि पूंजीवाद की कोख से पैदा हुई जीवन की जटिल समस्याओं का समाधान आप कैसे कर सकते हैं।

यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम या फिर अन्य शार्ट वीडियो साइट्स ने इन्हें हर यूजर तक पहुंचाने में मदद की है। अपनी समस्याओं से परेशान लोग इनको उसी तरह सुनने लगे जैसे सड़क किनारे मजमा लगाकार कोई मदारी खेल दिखाता है और लोग पलक झपकते इकट्ठा हो जाते हैं। पूंजीवादी आधुनिकता में बहकर अपना सामाजिक आधार गंवा चुके लोगों के लिए ऐसे मोटिवेशनल मदारी अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आज शहरी जीवन की अधिकांश समस्याएं अपना सामाजिक आधार खो देने से पैदा हुई है।

अगर हम अपनी जड़ों की ओर लौटकर सहज तरीके से उन समस्याओं पर विचार करें तो हमें बहुत सटीक जवाब मिल जाता है। लेकिन पूंजीवादी आधुनिकता के प्रवाह में बहकर माडर्न हो चुके लोग कहीं भी भटकने के लिए तैयार हैं लेकिन अपनी जड़ों और समाज की ओर नहीं लौटना चाहते। उन्हें लगता है कि अगर अपनी सामाजिक व्यवस्था में ही रहना है तो हम आधुनिक कैसे हो पायेंगे? उनकी आधुनिकता या मॉडर्निटी का नशा उन्हें अपनी जड़ों से काटकर भटकाता है और ऐसे ही भटके हुए लोगों की ताक में विवेक बिन्द्रा जैसे कथित मोटिवेशनल स्पीकर बैठे रहते हैं। वो ये दावा तो करते हैं कि उनके पास लोगों की समस्याओं का समाधान है। वो लोगों को मोटिवेट कर सकते हैं, लेकिन असल में यह उनका मोटिवेशन नहीं बल्कि बिजनेस है।

पूंजीवादी व्यवस्था में हर एक आदमी का संघर्ष पैसा कमाना बन गया है। जितना अधिक पैसा उतना अधिक सुख सुविधा। इसलिए बड़ा बिजनेस, बड़ा घर, बड़ी गाड़ी हर एक आदमी का सपना बन गया है। उसे लगता है कि जब उसके पास सबकुछ बड़ा बड़ा हो जाएगा तो वह भी बड़ा आदमी बन जाएगा। ये मोटिवेशनल स्पीकर इसी मानसिकता को पकड़ते हैं और जीवन में बड़ा आदमी बनने का फार्मूला बेचने लगते हैं। जैसे विवेक बिन्द्रा ने अपनी कंपनी का नाम ही “बड़ा बिजनेस सोल्यूशन्स” रखा है तो इसी मानसिकता को भुनाने के लिए रखा है। आज के इस दौर में हमें समझाया जा रहा है कि बड़ा आदमी बनना है तो बड़ा पैसा कमाना होगा। भले ही इसके लिए हर नैतिकता को अनैतिकता से खत्म कर देना पड़े। भले ही हमें हर अमानवीय कर्म करना पड़े, हम करेंगे लेकिन बड़ा आदमी जरूर बनेंगे। ये कथित मोटिवेशनल मदारी इस मानसिकता को बढ़ावा तो देते हैं, लेकिन यह नहीं समझा पाते कि बड़ा आदमी वह नहीं है जिसके पास बड़ी गाड़ी, बड़ा घर है।

बड़ा आदमी वह होता है जिसके पास बड़ा मन होता है। भारत में हम बड़ा आदमी उसको मानते रहे हैं जिसका मन बड़ा होता है। बड़े मन वाला व्यक्ति ही बड़े काम करता है और ऐसे बड़े काम करनेवाला व्यक्ति ही हमारा आदर्श बनता है। फिलहाल तो हमारी इसी समझ पर हमला हो रहा है। हमलावर कोई और नहीं बल्कि यही कथित मोटिवेशनल मदारी हैं जो कॉरपोरेट पूंजीवाद की कोख से पैदा हुए हैं और पूरे समाज को दिशाहीन करने में लगे हैं। इसीलिए विवेक बिन्द्रा जैसे तथाकथित मोटिवेशनल स्पीकर पैसा कमाने का मंत्र सिखाने की आड़ में बड़ी कमाई कर पाते हैं।

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