
संवाददाता
नई दिल्ली। ठंड शुरू होने के साथ ही दिल्ली-नोएडा में हम जो कुछ भी देख रहे हैं, उसमें कुछ भी नया नहीं है। यह हर साल की कहानी है। दिल्ली के एलजी ने आशंका जताई है कि कुछ इलाकों में हवा की गुणवत्ता यानी AQI 800 को पार कर गया है। पहाड़ी प्रदेशों या सुदूर केरल के गांव में बैठे लोग शायद अंदाजा भी नहीं लगा पाएंगे कि टीवी पर जो उन्हें धुआं-धुआं दिखाया जा रहा है वह अपने आप में कितनी बड़ी समस्या है। यह दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुरुग्राम और पूरे एनसीआर में रहने वाले लोगों की मुसीबत है जो उन्हें झेलनी ही पड़ेगी। वे नौकरी-पेशे के लिए किराये पर रह रहे हैं या घर लेकर बस गए हैं। अब जाएं तो जाएं कहां? करें तो करें क्या? पार्टियों के कार्यकर्ता हों या नेताओं के प्रशंसक उन्हें भी नहीं समझ आ रहा है कि इस महासंकट के लिए किसका मुंह देखें। इस विकट परिस्थिति का चक्रव्यूह भी ऐसा है कि हर पार्टियों के दामन पर दाग लगे दिखते हैं लेकिन नेता राजनीति करने से नहीं चूक रहे हैं। हर साल की समस्या को सुलझाने के नाम पर आज तक कोई ठोस उपाय नहीं हो सका। लेकिन एक पार्टी के नेता दूसरी पार्टी को घेरने में पीछे नहीं हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी के नेता और मंत्री पंजाब का नाम संभलकर ले रहे हैं क्योंकि वहां भी उनकी पार्टी सत्ता में है।
भाजपा के नेता दिल्ली के गैंस चैंबर बनने के लिए सीधे तौर पर केजरीवाल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सीएम अरविंद केजरीवाल को दूसरे राज्य में रैली करता देख लोग भी हैरान हैं। आज सुबह बीजेपी के एक नेता बड़ा मास्क लगाकर प्रदूषण का लाइव हाल सुनाते हुए केजरीवाल सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने बताया कि स्मॉग टावर बंद है। शाम होते-होते आम आदमी पार्टी के नेता चीखने लगे, ‘जो BJP नेता दिल्ली में नौटंकीबाजी कर रहे हैं वो हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जाकर AQI चेक करें।’ इन सबके बीच खांसती, छींकती, आंखों से पानी निकालती जनता गरम पानी का गरारा करते हुए सोच रही है- सब तो ठीक है नेताजी, पर हम ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहे… इसका कोई जवाब या उपाय है क्या? हमें भगवान भरोसे असहाय क्यों छोड़ा गया है?
पानी छिड़कने से क्या होगा?

हां, यह सवाल अब दिल्लीवाले खुलकर पूछ रहे हैं। आज के हालात एक्यूआई मीटर के पैमाने को क्रॉस कर गए हैं। अब सड़क या पेड़ों पर पानी छिड़कने से स्थिति सुधरने वाली नहीं है। लेकिन इसकी भी मार्केटिंग होती है। जैसे सफाई अभियान दिखाने के लिए कुछ नेता कूड़ा तैयार करते हैं फिर तस्वीर खींचे जाने तक उसे साफ करते हैं। उसी तरह से ठंड शुरू होने से पहले पानी छिड़कने वाली मशीनों की तस्वीरें, वीडियो और उपकरणों की गिनती मीडिया के सामने की जाती है जिससे जनता में संदेश जाए कि देखिए सरकार कितनी गंभीर है। पर अब क्या कहिएगा? माता-पिता अपने बच्चों से क्या कहें? वे भी बार-बार पूछ रहे हैं कि पापा ये पलूशन इतना क्यों है? हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा रहा है लेकिन सरकारें फर्ज अदायगी कर रही हैं। केंद्र दिल्ली की तरफ, दिल्ली दूसरे राज्यों की तरफ, दूसरे राज्य अपना-अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। अब राजनीति का अवसर देख लीजिए। भाजपा नेता ने सवाल किया तो आप ने जवाब भी दे दिया। क्या, दो वीडियो में देखिए।
राजनीति चुक जाए तो गौर कीजिएगा

- दुनिया की मीडिया में खबर पढ़कर लोग सोच रहे होंगे कि दिल्लीवाले कैसे जिंदा हैं? हां, गैंस चैंबर बन चुकी दिल्ली की हवा में इतना पलूशन घुल चुका है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की हेल्थ लिमिट से करीब 100 गुना ज्यादा है।
- अमेरिका ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों के राजनयिक जो दिल्ली में परिवार के साथ रह रहे हैं, वे अपने देश जाकर क्या बताएंगे किसी को फिक्र है?
- हम बात-बात पर विश्वगुरु कहने लगते हैं राजधानी की एक बड़ी समस्या से करोड़ों लोगों की जिंदगी खतरे में है और हम दुनिया में युद्ध रोकने के प्रयास की बातें करते हैं।
- जरा सोचिए 500 तक एक्यूआई का पैमाना है अगर यह 800 पहुंच गया है तो हमारे फेफड़े कितना टिक पाएंगे। क्या करोड़ों की आबादी को सरकारें मौत के मुंह में जाने देना चाहती हैं?



